SADED in collaboration with ITD-HST, Bangalore is conducting a 2 day Workshop on Traditional Healers Meet on the 6th and 7th November 2014 in New Delhi at Pragathi Maidan.
The green features is regular archiving has empirical reports/news/ideas on different aspects of "Ecological Democracy" mainly includes theoretical debates on Economic, Spiritual, Culture, Social, Political and Gender Dimension. It aim to cover mainstreaming marginal voice in respect to ecology. Green features started in April 2012 in the name of "Ecological News".
Wednesday, 28 December 2016
Traditional Healers Meet 2014 (SADED)
SADED in collaboration with ITD-HST, Bangalore is conducting a 2 day Workshop on Traditional Healers Meet on the 6th and 7th November 2014 in New Delhi at Pragathi Maidan.
SADED
सेडेड:
साऊथ एशियन डायलाग्स आन इकोलोजिकल डेमोक्रेसी यानी सेडेड वर्ष 2000 में
वसुधैव कुटुम्बकम, सेन्टर फार स्टडी आफ डेवलपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) और लोकायन जैसी भारतीय संस्थाओं के साथ फिनलैण्ड की केपा और सीमेन्यू
फाउन्डेशन की साझा पहल के कामकाज के चलते अस्तित्व में आया । हालांकि, सेडेड व्यवहारिक रूप में इससे ज्यादा विस्तृत साझेदारियों और संरचनाओं का
गठजोड़ है, जिसमें
कई संगठनों/सक्रिय व्यक्तियों के प्रयास
शामिल हैं और यह किसी एक केंद्र
से बंधा हुआ नहीं है।
सेडेड प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय समाज के
नियंत्रण की वकालत करता है और इसके माध्यम से ही लोकतंत्र के क्षैतिज विस्तार का समर्थन करता है। सेडेड का मानना है कि
इसी विचार में मानवजाति का कल्याण निहित है। संपूर्ण मानवजाति के
न्यायसंगत विकास और पारिस्थितिकीय स्थिरता आदि मुद्दों पर विश्व भर में संधर्षरत
परिवर्तन के कार्यकर्ताओं को जोहान्सिबर्ग में (2002) सतत्
विकास के संबंध में हुए विश्व सम्मेलन ने निराश किया। वर्तमान आधुनिक विज्ञान, सामाजिक-आर्थिक प्रक्रियाएं और नीतियां मानव जीवन, समकालीन समस्याएं और
आम जन के दृष्टिकोण को आपस में जुड़ा हुआ देखने के बजाय खंडित रूप में देखती है।
आज लोकतंत्र का अर्थ केवल राजनैतिक ढांचे का प्रतिनिधित्व करना रह
गया है। पिछले 200-500 सालों में संस्थानीकरण पर जबरदस्त जोर के बावजूद, जिसका नतीजा अंततः वर्तमान में मौजूद एकाधिकार की प्रक्रियाओं, आधिपत्य तथा मानवता को लगातार कमजोर करने वाले वैश्वीकरण के रूप में मिला
है, लोकतंत्र
का एक अन्य परिप्रेक्ष्य भी है जो एक
विचार के रूप में दुनिया भर में
बहुप्रचारित और बौद्धिक रूप से समर्थित
भी है। यह परिवार, समुदाय,मानव समाज
में अंतर्निहित समानता, परस्परता एवं
व्यक्तिगत सम्मान पर आधारित
सम्बंधों का विचार है जो इनमें सीमित
होने के बजाय प्रकृति, लैंगिक, अथवा राज्य-राष्ट्र और बाजार आदि से लगायत विभिन्न राष्ट्रों के
नागरिकों को भी समाहित किये हुए है।
जीवन के सभी
क्षेत्रों में लोकतांत्रिक मुल्यों की स्थापना और व्यवहार के लिए आवश्यक
प्रयास एवं हस्तक्षेप किसी भी एक संगठन के प्रयासों के मार्फत नहीं हो
सकता। सभी को संगठित और एक दुसरे में निहित कर देने वाली किसी भी संरचना के
निर्माण के बजाए अपने अपने रास्तों में उन अन्तर विभाजक बिन्दुओं को
चिन्हित करने की जरूरत है जहां हम सभी के प्रयास एक दूसरे से मिलते हों, जहां हम एक दुसरे को अपना कह सकें और आपसी मतभेदों के बावजूद एक दूसरे के द्वारा
जारी, लोकतांत्रिक हस्तक्षेपों को पोषित कर सके। ऐसे स्थान के
निर्माण की जरूरत है जहां लोकतंत्र की चिन्ताएं अथवा नयी योजनाएं बन सके, या फिर ऐसा मंच हो जहां से विविध हस्तक्षेपों के साथ साथ विविध पृष्ठभूमि से आने
वाले लोग अपने अपने कार्यों को साझा करते हुए नये गठबंधनों का निर्माण
कर सके, और अपनी सांगठनिक पहचान कायम रख सकें।
सेडेड यह मानता है कि
इस दृष्टिकोण पर आधारित राजनीति निर्माण और सभी संस्थानों का एक
सतत विकासशील लोकतांत्रिकरण कराना एक साझा चुनौती है। राजनीति के ढाचे में
किये जा रहे सभी कार्यों में '
हरित स्वराज ' की
संकल्पना का स्थान केन्द्रीय है।
जीवन के सभी आयाम और उनमें नीहित
लोकतंत्र आपस में इस प्रकार गुथे हुए हैं
कि किसी एक पर केन्द्रित होते ही दूसरा
स्वतः ही दृष्टिगत हो जाता है।
पारिस्थितिकी का संकट हमारे समय काल के
संदर्भ में एक विशेष परिघटना है, इसके बावजूद भी अब तक इस पर कारगर ढंग से ध्यान नहीं दिया जा
सका है । ऐसे में, सेडेड ' हरित स्वराज ' के मार्फत एक व्यापक लोकतंत्र की स्थापना और इसके सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत हैं। ' पारिस्थितिकी-लोकतंत्र
' की संकल्पना मानव और प्रकृति के बीच लोकतांत्रिक सम्बंधों का
निर्माण करती है, साथ ही मानव समाज में पाकृतिक संसाधनों के, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय सभी स्तरों पर,
बराबर के बटवारें की वकालत भी करती है।
सेडेड
का मिशनः-
' हरित स्वराज ' की संकल्पना को अभिव्यक्त करने के लिए अब ऐसे तरीकों/माध्यमों की पहचान करना,
जो भारत समेंत पूरे दक्षिण एशिया के
समाजों में इस संकल्पना को एक विष्वदृष्टि के रूप में विकसित कर सके।
यह तभी मुमकिन है जब लोकतंत्र को अपने विस्तृत अर्थों में समझा जा सके, अर्थात जीवन के सभी आयामों में लोकतंत्र का अभ्यास किया जा सके।
दृष्टिकोण
जन जीवन के विभिन्न आयामों के साथ पारिस्थितिकी-सम्बंधी मुद्दों
के जुड़ाव की सैद्धान्तिक अभिव्यक्ति का माध्यम लोकतंत्र के ढांचे में रहते
हुए होना चाहिए।
साथ ही, यह अभिव्यक्ति ऐसी
होनी चाहिए जो समाज के अधिकतम
सम्भव वर्गों तक पहुँच सके और उनके
दैनिक क्रिया कलाप को प्रभावित कर सके।
यह अभिव्यक्ति राजनैतिक रूप से तभी
प्रभावशाली होगी जब सभी साझा रूप से इन
प्रयासों में एक महती भुमिका निभाएं। इन
योजनाओं की अभिव्यक्ति और आधार
विभिन्न जीवनशैलियों की वास्तविकता पर
टिका होना चाहिए। सैद्धान्तिक लेखन
और विमर्श, दैनिक क्रिया कलाप
में इनकी सुदृढ अभिव्यक्ति, आर्थिक, सामाजिक
सम्बंधों अथवा सांगठनिक संरचना निर्माण
और प्रक्रियाओं, साझा सांस्कृतिक
सन्दर्भों और राजनैतिक अभियानों आदि के
मार्फत इन योजनाओं की विविध
स्वरूपों में अभिव्यक्ति होनी चाहिए, चाहें यह कितनी भी
नाजुक हो।
सेडेड के लक्ष्य
सेडेड का लक्ष्य '
हरित स्वराज ' की
रणनीति और वैसे विषयगत सैद्धान्तिक
प्रशासनिक और व्यवहारिक माडल का
निर्माण करना है जिससे निम्न उद्देश्यों
की पूर्ति की जा सकेः-
जन जीवन में निहित
लोकतंत्र के बतौर जीवन के सभी आयामों में '
हरित स्वराज ' के सिद्धान्तों को
व्यवहारिक उपयोग में लाने की वकालत करने वाले सार्वजनिक बहस का निर्माण किया
जाए।
' पारिस्थितिकीय चिन्ता एवं लोकतांत्रिक आग्रह के विभिन्न आयामों
का आपस में सघन जुड़ाव को विस्तृत पटल पर प्रदर्शित करना।
स्थानीय समूहों, जन आन्दोलनों के साथ सहयोग,
' हरित स्वराज ' की
जमीनी समझ ओर दृष्टि को स्थानीय से वैश्विक स्तर की वार्ताओं का हिस्सा
बनाना और भारतीय सामाजिक मंच, एशियाई सामाजिक मंच,
युरोपीय-एशियाई सामाजिक मंच, अफ्रिकी-एशियाई
सामाजिक मंच और विश्व सामाजिक मंच आदि दूसरे प्लेटफार्मों तक पहुँचाना ।
सेडेड
के उद्देश्य:-
विभिन्न माध्यमों के द्वारा '
हरित स्वराज ' की
संकल्पनाओं को अभिव्यक्त करने की
संभावनाएं तलाशना, सभी माध्यमों की
सीमाएं और सामर्थ्य समझना, सभी के
माध्यम से सफलतापूर्वक वार्ता में नीहित
खतरे और बाधा समझना और भविष्य में
आपसी सहयोग की स्थिति बनाना।
जन सामान्य के स्तर
पर ' हरित स्वराज ' की समझ गहरी करना और वास्तविक जीवन में सुदृढ अभ्यास के लिए
प्रेरित करना।
ज्ञान, समर्पित लोग, साहित्य, सांस्कृतिक कार्यक्रम, नेटवर्क आदि संसाधनों
को जुटाना/मजबूत करना ताकि '
हरित स्वराज ' के
प्रति सार्थक प्रयास जारी रह
सकें।
सेडेड
की कार्यविधि:-
सेडेड का न ही कोई औपचारिक अस्तित्व है और न कोई बंद दायरा। यह
एक ' हरित स्वराज ' और स्थिरता/टिकाउपन पर ज्ञान आधारित नेटवर्क है, जो कि विभिन्न कार्यकर्ताओं, संगठनों और जन आन्दोलनों से मिल कर बना है, और यह लगातार नये पहल और साझेदारों के साथ सक्रिय है। सेडेड नेटवर्क के माध्यम
से यह मदद अनेक कार्यकर्ताओं और संगठनों तक पहॅुचती है।
सेडेड हमेंशा विचारों में खुलेपन का हिमायती रहा है क्योंकि ' हरित स्वराज ' के इर्द गिर्द घूमने वाला सम्पूर्ण बौद्धिक राजनैतिक कार्यक्रम संवाद
आधारित है। अगर हम उन सन्दर्भों के धरातल को समझ लें, जिस पर सेडेड कार्य
कर रहा है तो हम हस्तक्षेप के संवाद आधारित स्वरूप को बेहतर समझ
सकतें हैं।
दक्षिण एशिया की वास्तविकता न केवल जटिल, विभिन्न और बहुपरती
है बल्कि तेजी से बदलती हुई भी है। विभिन्न घटक अलग अलग स्तर पर एक ही सन्दर्भ
को कई अलग अर्थों में इस्तेमाल कर रहें हैं। दक्षिण एशिया में ही, भारत के अन्दर समाजवाद पर गांधी और अम्बेडकर जैसे गैर माक्र्सवादी व्यक्तियों
का वैचारिक प्रभाव स्पष्टतः दृष्टिगत है और यह काफी गहराई तक अपनी जड़े
जमा चुका है। लेकिन दक्षिण एशिया के दुसरे देशों में गांधी को शायद ही
समाजवाद के साथ एकीकृत रूप में देखा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से, गांधी और माओं के
विचारों से प्रभावित कार्यकर्तागण प्राकृतिक सम्पदा और न्याय के सवाल
पर आपस में भी संघर्षरत है। स्थानीय परिस्थितियों, दमन की आकस्मिकताओं
और जमीनी स्तर पर संघर्ष के आधार पर सहक्रियाएं और गठबंधन बनाये जाते हैं, उदारवाद, माक्र्सवाद, गांधीवाद, अम्बेडकरवाद आदि
वैचारिकी के आधार पर नहीं।
सेडेड का यह अनुभव है कि न्याय और स्थिरता आदि के सवालों पर
हस्तक्षेपकारी उद्यम अगर सामान्य सैद्धान्तिक विभाजन में बंधा रहें तो स्थिरता की
दृष्टि से रास्तों को चिन्हित कर पाना मुश्किल हो सकता है।
पारिस्थितिकी-लोकतंत्र की
दृष्टि के उदय में कोई महत्वपूर्ण
योगदान तभी सम्भव है जबकि पारिस्थितिकी
और लोकतंत्र आदि के विभिन्न आयामों को
साझा तरीके से समझा जाय।
सेडेड की समझ यह है कि त्वरित और टिकाउ उपायों की मांग करते वर्तमान पारिस्थितिकीय-संकट के निराकरण के लिए वांछित और अर्थपूर्ण
योगदान देना तभी सम्भव है जबकि पारिस्थितिकी से जूड़े सभी मसलों पर एक साझा समझ
कायम की जा सके। विकास आधारित माडल पर लगातार बढते दबाव के साथ, लगातार बढते स्वच्छ पानी की बर्बादी और अस्वच्छ जल में रूपान्तरण, प्राकृतिक जल-चक्र की बर्बादी, खनिज, जल, जीवाश्म ईंधन, कोयला, वन, समूंद्री जीव जंतु,
मिट्टी के गिरते स्तर, दक्षिणी शहरों में
बढता औद्योगिक और अन्य प्रकार का प्रदूषण,
स्टील-सिमेंट-बिजली पर आधारित ' आधुनिकता ' और शहरीकरण आदि
कारकों ने ही दक्षिण एशिया के साथ साथ वैश्विक दक्षिण में पारिस्थितिकी का
संकट पैदा किया है।
पूरे दक्षिण एशिया
में इस संकट के विरूद्ध राजनैतिक
प्रयासों की कमीं एक अलग त्रासदी है। इन
सवालों को समग्र स्वरूप में उठाने
वाले मुट्ठी भर लोग और सहधर्मीर्, राज्य और राष्ट्र की
हुकुमत के सामने काफी कमजोर हैं।
इस व्यापक
पारिस्थितिकी संकट के प्रति एक
एकीकृत राजनैतिक पारिस्थितिकीय समाधान
ढूढने के लिए तमाम एक सुत्रीय
आन्दोलनों में जुड़ाव बनाने की
प्रक्रिया को तेज करने वाले विविधतापूर्ण
प्रयास की जरूरत है। इसके लिए सर्वप्रथम
इन विविध सामाजिक आन्दोलनों के
राजनैतिक और वैचारिक कीमत को चिन्हित
करना और स्वीकारना जरूरी होगा।
हालांकि, अनेको समुह और गैर
सरकारी संगठन और सामाजिक आन्दोलन इन मुद्दों को उठा रहें हैं, और इनमें से ज्यादातर
निर्दिष्ट एक सूत्रीय मुद्दों और नतीजों पर
कार्यरत हैं। जबकि चुंकि पारिस्थितिकी
संकट बहुआयामी है, अतः इसे मुद्दा
आधारित समाधान के बजाय एक विस्तृत और
साझा दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह
साझा रूप से सोचने की जरूरत है कि
विभिन्न आयाम इस पारिस्थितिकी संकट से किस प्रकार से जुड़े
हुए है, तभी विकास का वैकल्पिक माडल एक स्वभाविक चयन बन कर उभर सकता है।
विषय
क्षेत्र:-
पिछले तमाम वर्षों में, सेडेड ने इन थीमैटिक क्षेत्रों को अपने केंद्रीय कार्यों के रूप में चिन्हित किया है,
जो पारिस्थितिकी के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक लोकतंत्र के स्थानीय से वैश्विक स्तर तक मौजूद है:-
·
टिकाऊ
कृषि; किसान स्वराज अभियान।
·
जल-नदी-बाढ
प्रबंधन।
·
पारिस्थितिकी,, सम्मान एवं वंचित
बहुसंख्यक
·
हिमालय
स्वराज अभियान
·
आदिवासी
सर्वाइवल ग्लोबली
·
कोई
भुखा न सोये संवाद
·
अन्तर
महादेशीय संवाद ।
सेडेड
के सिद्धान्त और प्रक्रियाएं:-
सेडेड, इन विभिन्न विषय से सम्बंधित,
विभिन्न माध्यमों से संवाद कार्यक्रम
चलाता है, जिनमें
विविध वर्गों के बीच बहुआयामी संवाद, औपचारिक बैठकें, कार्यशाला, अथवा स्थानीय, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सेमिनार का आयोजन; जीवनशाला (विद्यालय) और बच्चों
और प्रौढों के लिए उपचारात्मक कक्षाओं का संचालन;
पदयात्रा;
जमीनी शोध आदि प्रमुख माध्यम हैं जो
संवाद के नये चैनल उपलब्ध
कराते हैं।
वार्ता के इन विविध
माध्यमों को आसन्न संकट के प्रति
समझदारी को मजबूति से विभिन्न सामाजिक
दायरों और सन्दर्भों में विस्तार
देने वाले माध्यमों के रूप में देखा जा
सकता है। जैसे पारिस्थितिकी
लोकतंत्र के विशिष्ट संदर्भों को समझने
के लिए वंचितो के अभियानों/आनदोलनों
में शामिल होना; पारिस्थितिकीलोकतंत्र
का विचार विकसित करने के लिए सम्वाद
सृजन,
और कैसे इसे यथार्थवादी दृष्टि से मजबूत
किया जा सकता है; पारिस्थितिकी जीवन शैली और विश्व दृष्टि की पहचान करना एवं
इन्हें आदिवासी आदि जन समुहों के साथ मिलकर मजबूत बनाना।
इन सभी में वैसे
सिद्धान्त जिनका अनुपालन सभी में किया गया है,
वे हैं-
स्वैच्छिक भागीदारी
को पारिस्थितिकी लोकतंत्र के संसाधन के रूप में प्रोत्साहित किया गया है।
अपेक्षकृत ज्यादा पारिस्थितिकी दृष्टिकोण (जो अक्सर वंचित समुदायों और कम
विकसित क्षेत्रों में दिखता है) को उनकी योग्यता, क्षमता, और संसाधन की तुलना
में ज्यादा प्रोत्साहित और प्रचारित किया गया एवं उन्हें
नेतृत्वकारी भुमिकाओं में लाया गया।
सैद्धान्तिक और जमीनी
मुद्दों और बहस को आपस में लिंक किया गया।
सहयोगात्मक गतिविधियों में शामिल होना,
वर्तमान में जारी प्रयासों को सुदृढ
करना और उन्हें समर्थन देना,
और ' हरित स्वराज ' के कार्यों के लिए अब
तक हासिल उर्जा और संसाधनों को मजबूत करना।
सेडेड की पहचान बनाने
पर केन्द्रित हुए बिना नये नेटवर्कों को विकसित करना और मजबूत करना।
संगठन के प्रचार-प्रसार और श्रेय लेने के बजाय पारिस्थितिकी
लोकतंत्र के मुद्दों और योजनाओं को अग्रेसित करना ही प्राथमिक रहा।
अतः, ' हरित
स्वराज ' की संकंल्पना को गहरा और मजबूत बनाने के लिए संवाद कार्यक्रमों को आयोजित और संगठित करने के अलावा, जिन औपचारिक गतिविधियों में सेडेड शामिल रहता है वो निम्न हैः-
नए नेटवर्क का
निर्माण और पारिस्थितिकी स्वराज के सवाल पर प्रासंगिक पूराने नेटवर्कों में
हिस्सेदारी
पड़ोसी दक्षिण एशियाई
देशों और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन कार्यों का प्रसार।
पर्यावारणीय संकट और ' हरित स्वराज ' की सूचनाओं/जानकारियों को सामान्य और आधारित प्रेस तक पहुँचाना और पारिस्थितिकी लोकतंत्र से
जूड़े सवालों पर कार्यरत शोधार्थियों और कार्यकर्ताओं को सहायतार्थ सेडेड
रिसोर्स सेन्टर का उन्नयन, ताकि उन्हें कार्यस्थल के साथ साथ अखबारों की कटिंग, दस्तावेज आदि उपलब्ध किया जा सके।
******
Subscribe to:
Posts (Atom)
-
source: http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/09-sep-2016-edition-Delhi-City-page_14-3615-3364-4.html
-
भविष्य का कृषि संकट कार्पोरेट खेती / कार्पोरेट जमींदारी विवेकानं...
-
World Economic Forum's (WEF's) global competitiveness index (GCI), released Ahmedabad doesn't figure among top 100 world inn...