पेड़ लगाने से जंगल नहीं बनता, जंगल कई सौ सालों में प्रकृति बनाती है…
जंगल को मनुष्य की जरूरत के हिसाब से बचाया जाना
चाहिए, सरकार के हिसाब से नहीं…
हिमालय
पर मंडराते संकट को लेकर जमीनी कार्यकर्ताओं ने जताई चिंता…
नैनीताल
7 जून। हिमालय
पर संकट बढ़ रहा है और हिमालय के इस संकट को गंभीरता से नहीं लिया गया
तो देश की एक तिहाई
आबादी से ज्यादा को पानी देने वाली गंगा ही खत्म हो जाएगी।
यह
बात नैनीताल
के उमागढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ में सोमवार को हुई कार्यशाला में उभर कर
आई। कार्यशाला का आयोजन हरित स्वराज संवाद की तरफ से किया गया
था।
कार्यशाला में बोलते हुए सच्चिदानंद भारती
हरित संवाद की तरफ से आज यह जानकारी दिल्ली विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर अनिल मिश्र ने दी।
हरित संवाद की तरफ से आज यह जानकारी दिल्ली विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर अनिल मिश्र ने दी।
कार्यशाला
में तय हुआ कि आगामी नौ सितंबर को नई दिल्ली में हिमालय दिवस के मौके पर पहाड़ के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्त्ता और पर्यावरण के
क्षेत्र में काम करने वाले पहाड़ पर मंडराते संकट का ब्यौरा देंगे। कार्यशाला में गैरसैण के आसपास
करीब डेढ़ सौ गांवों में पानी और जंगल के मुद्दे पर काम करने वाले
सच्चिदानंद भारती और जंगल के विशेषज्ञ विनोद पांडे इस कार्यशाला के मुख्य
वक्ता थे।
भारती ने कहा कि हिमालय से मनुष्य का संबंध हजारों साल पुराना है और ज्यादातर धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। पर वह हिमालय आज संकट में है। तरह-तरह की आपदा से जूझ रहा है। इनमें कुछ प्राकृतिक हैं तो कुछ मानव निर्मित। जगह- जगह बादल फटना हो या जंगल में आग लगना, यह इसी सब का नतीजा है।
हिमालय क्षेत्र की तीन प्रमुख नदियां और नदी
प्रणाली गंगा, ब्रह्मपुत्र और
सिंधु हैं जो देश की 42 से 47 फीसद आबादी का भरण पोषण करती आई हैं।
अब ये संकट में हैं। हिमालय की समय पर सुध
नहीं ली गई तो न गंगा बचेगी न सिन्धु।
उन्होंने आगे कहा कि पहाड़ का समाज पानी पर बसा समाज है। यहां विवाह के बाद दुल्हन से पहला काम धारा या नौला से पानी लाने का कराया जाता
है, जिससे इस समाज में पानी के महत्व को आसानी से समझा जा सकता है। पर अब
सबकुछ बदल रहा है। अब पहाड़ पर ही पानी का
संकट पैदा हो चुका है तो मैदान का क्या होगा।
कुछ साल पहले ही अल्मोड़ा में कोसी से पानी खींचने वाले चार में से तीन पंप बंद कर देने पड़े क्योंकि नदी में इतना पानी ही नहीं बचा था।
तब करीब एक लाख की आबादी वाला अल्मोड़ा
बेहाल हो गया था। अब पहाड़ के कई हिस्सों में
यह हालात हो चुके हैं।
कार्यशाला में बोलते हुए पूर्व विदेश सचिव
शशांक
श्री
भारती ने आगे बताया कि कैसे उन्होंने गैरसैण के पास कई किलोमीटर क्षेत्र में
गांव वालों की मदद से तीस हजार से ज्यादा छोटे-छोटे तालाब बना कर उस अंचल
में न सिर्फ पानी को बचाया बल्कि बड़े पैमाने पर जंगल भी बचाए।
कार्यशाला
के दूसरे सत्र में विनोद पांडे ने कहा कि पेड़ लगाने से जंगल नहीं बनता। जंगल कई
सौ सालों में प्रकृति बनाती है। जंगल का अर्थ सिर्फ शेर बाघ और हिरन
नहीं होता। इसमें मेढक भी होते हैं तो हजारों कीटों को खाने वाले चमगादड़ और
पशु पक्षी भी। समूची जैव श्रंखला होती है। इसलिए जंगल जो हैं उन्हें
मनुष्य की जरूरत के हिसाब से बचाया जाना चाहिए, सरकार के हिसाब से नहीं।
कार्यशाला
के प्रथम सत्र की अध्यक्षता पूर्व राजदूत और विदेश सचिव रहे शशांक
ने की तो दूसरे सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की
पूर्व विभागाध्यक्ष और जानी मानी आलोचक निर्मला जैन ने की।
इस
मौके पर आईटीएम विश्वविद्यालय के कुलपति रमा शंकर सिंह, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय
विश्विद्यालय के पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय, उत्तर प्रदेश के पूर्व आईजी शैलेंद्र
प्रताप सिंह,
पत्रकार अंबरीश कुमार, रजनीकांत मुद्गल, सुप्रिया राय, सविता वर्मा, राजस्थान के पूर्व मुख्य फारेस्ट
कंजरवेटर राजेश भंडारी आदि भी मौजूद थे।
Vedio link:-
(i) Sachinanda Bharati
(ii) Vinod Pande
(iii) R. C. Bhandari
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