Thursday 24 August 2017

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, राइट टु प्राइवेसी मौलिक अधिकारों का हिस्सा है

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, राइट टु प्राइवेसी मौलिक अधिकारों का हिस्सा है

एक बेहद अहम फैसले के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार, यानी राइट टु प्राइवसी को 

मौलिक अधिकारों, यानी फन्डामेंटल राइट्स का हिस्सा करार दिया है.


नई दिल्ली: एक बेहद अहम फैसले के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार, यानी राइट टु प्राइवसी को मौलिक अधिकारों, यानी फन्डामेंटल राइट्स का हिस्सा करार दिया है. नौ जजों की संविधान पीठ ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए कहा कि राइट टु प्राइवेसी मौलिक अधिकारों के अंतर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है. इस फैसले का असर सीधे-सीधे विभिन्न सरकारी योजनाओं आधार कार्ड से जोड़ने के मामले पर पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट में कुल 21 याचिकाएं थीं. कोर्ट ने 7 दिनों की सुनवाई के बाद 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था. दरअसल 1950 में 8 जजों की बेंच और 1962 में 6 जजों की बेंच ने कहा था कि 'राइट टु प्राइवेसी' मौलिक अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की पीठ में CJI जेएस खेहर, जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस AR बोबडे, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस अभय मनोगर स्प्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं.

क्या थी कोर्ट की दलील
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में जजों ने कहा कि अगर मैं अपनी पत्नी के साथ बेडरूम में हूं तो यह 'प्राइवेसी' का हिस्सा है. ऐसे में पुलिस मेरे बैडरूम में नहीं घुस सकती. हालांकि अगर मैं बच्चों को स्कूल भेजता हूं तो ये 'प्राइवेसी' के तहत नहीं आता है, क्योंकि यह 'राइट टु एजूकेशन' का मामला है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आप बैंक को अपनी जानकारी देते हैं. मेडिकल इंशोयरेंस और लोन के लिए अपना डाटा देते हैं. यह सब कानून द्वारा संचालित होता है. यहां बात अधिकार की नहीं है. आज डिजिटल जमाने में डाटा प्रोटेक्शन बड़ा मुद्दा है. सरकार को डाटा प्रोटेक्शन के लिए कानून लाने का अधिकार है. सरकार द्वारा गोपनीयता भंग करना एक बात है, लेकिन उदाहरण के तौर पर टैक्सी एग्रीगेटर द्वारा आपका दिया डाटा आपके ही खिलाफ इस्तेमाल कर ले प्राइसिंग आदि में वो उतना ही खतरनाक है.


'राइट टू प्राइवेसी भी अपने आप में संपूर्ण नहीं'
कोर्ट ने कहा, मैं जज के तौर पर बाजार जाता हूं, और आप वकील के तौर पर मॉल जाते हैं. टैक्सी एग्रीगेटर इस सूचना का इस्तेमाल करते हैं. 'राइट टु प्राइवेसी' भी अपने आप में संपूर्ण नहीं है. सरकार को डाटा प्रोटेक्शन के लिए कानून लाने का अधिकार है. राइट टु प्राइवेसी भी अपने आप में संपूर्ण नहीं है. सरकार को वाजिब प्रतिबंध लगाने से रोका भी नहीं जा सकता है. क्या केंद्र के पास आधार के डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई मजबूत मैकेनिज्म है? विचार करने की बात यह है कि मेरे टेलीफोन या ईमेल को सर्विस प्रोवाइडर्स के साथ शेयर क्यों किया जाए? मेरे टेलिफोन पर कॉल आती हैं तो विज्ञापन भी आते हैं. तो मेरा मोबाइल नंबर सर्विस प्रोवाइडर्स से क्यों शेयर किया जाना चाहिए. क्या केंद्र सरकार के पास डेटा प्रोटेक्ट करने के लिए ठोस सिस्टम है? सरकार के पास डेटा को संरक्षण करने लिए ठोस मैकेनिज्म होना चाहिए.

यह सुनिश्चिचत हो कि डाटा सुरक्षित रहे 
कोर्ट ने कहा, हम जानते हैं कि सरकार कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार का डाटा जमा कर रहा है, लेकिन यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि डाटा सुरक्षित रहे. क्या कोर्ट प्राइवेसी की व्याख्या कर सकता है? आप यही कैटलॉग नहीं बना सकते कि किन तत्वों से मिलकर प्राइवेसी बनती है. प्राइवेसी का आकार इतना बड़ा है कि ये हर मुद्दे में शामिल है. अगर हम प्राइवेसी को सूचीबद्ध करने का प्रयास करेंगे तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे. 

अगर 'राइट टू प्राइवेसी' संविधान के प्रावधान में है तो इसे कहां ढूढ़ें? हमारे साथ दिक्कत यह है कि क्या इसे एक से ज्यादा संविधान के प्रावधानों में तलाशा जाए? संविधान की अनुछेद 21 में इसे तलाशना कम कष्टकारी होगा, लेकिन अगर ये आर्टिकल 19 में है तो हमें यह ढूढ़ना होगा कि किस केस के हिसाब ये कहां सही ठहरता है? केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि प्राइवेसी को पूरी तरह मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता, हालांकि कोर्ट को प्राइवेसी का वर्गीकरण करना चाहिए और इसके कुछ हिस्सों को मौलिक अधिकारों के तहत सरंक्षण दिया जा सकता है.

बनाई गई है कमेटी
ASG तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि यह डेटा पूरी तरह प्रोटेक्टेड है. डेटा प्रोटेक्शन को लेकर सरकार कानून ला रही है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है. गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा की बीजेपी सरकारों ने कोर्ट में कहा है कि प्राइवेसी एक मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि एक धारणा है

कपिल सिब्बल की दलील
गैर बीजेपी सरकार वाले चार राज्यों पंजाब, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और पुदुचेरी की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि 1954 और 1962 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में उस तरह कभी विचार नहीं किया जा सकता था जैसी तकनीक आज 21 वीं सदी में मौजूद है. उन्होंने कहा था कि प्राइवेसी संपूर्ण राइट नहीं है न ही हो सकती है. हालांकि कोर्ट को इसमें संतुलन बनाना होगा

SOURCE: NDTV

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