Thursday 28 December 2017

“मैं आश्चर्य से भर जाता हूँ” रवीन्द्रनाथ टैगोर (1930)

“मैं आश्चर्य से भर जाता हूँ”

रवीन्द्रनाथ टैगोर (हिन्दी अनुवाद: अखिल कुमार)

आखिरकार मैं रूस में हूँ! मैं जिधर भी नज़र दौड़ाता हूँ, आश्चर्य से भर जाता हूँ। किसी भी दूसरे देश में ऐसी स्थिति नहीं है…ऊपर से नीचे तक वे हर किसी को जगा रहे हैं….
यह क्रान्ति लम्बे समय से रूस की दहलीज पर खड़ी अन्दर आने का इन्तज़ार कर रही थी। लम्बे समय से तैयारियाँ चल रही थीं; इसके स्वागत के लिए रूस के अनगिनत ज्ञात और अज्ञात लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी और असहनीय यंत्रणाओं को भोगा।

क्रान्ति का ध्येय व्यापक है, परन्तु शुरुआत में यह दुनिया के कुछ निश्चित हिस्सों में घटित होती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे, पूरे शरीर के रक्त के संक्रमित होते हुए भी, कमज़ोर जगहों पर चमड़ी लाल हो जाती है और छाले फूट पड़ते हैं। यह रूस ही था, जहाँ की गरीब और बेसहारा जनता अमीरों और ताकतवर लोगों के हाथों इस कदर ज़ुल्म सह रही थी जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इसलिए, यह रूस ही है, जहाँ दो पक्षों के बीच की इस अत्यधिक गैर-बराबरी एक रैडिकल समाधान सामने आया है।

….वह क्रान्ति जिसने ज़ार (रूस का बादशाह) के शासन का अन्त कर दिया, 1917 में ही हुई है, यानी अभी 13 वर्ष पहले की ही बात है। इन 13 वर्षों के दौरान उन्हें अपने देश के भीतर और बाहर, दोनों जगह हिंसक विरोधियों के विरुद्ध लड़ना पड़ा। वे अकेले हैं और उन्हें अपने कन्धों पर जर्जर राजनीतिक व्यवस्था का भार उठाना पड़ रहा है। इससे पूर्व के कुशासन का इकट्ठा किया हुआ कचरा उनके पैरों की बेड़ियाँ बन रहा है। गृहयुद्ध के जिस तूफ़ान को पार कर उन्हें नये युग के तट पर पहुँचना था, उसे इंग्लैण्ड और अमरीका की गुप्त और खुली मदद ने प्रचण्ड बना दिया। उनके पास संसाधन कम हैं: विदेशी व्यापारियों से उन्हें कुछ भी उधार नहीं मिल सकता। न ही देश में पर्याप्त उद्योग हैं। सम्पदा के उत्पादकों के रूप में अभी शक्तिहीन हैं। इसलिए, वे इस परीक्षा की घड़ी को पार करने के लिए अपना खुद का भोजन बेचने को मजबूर हैं। इसके साथ ही, उनके लिए राजनीतिक मशीनरी के सबसे अनुत्पादक हिस्से, सेना, को पूरी तरह कायम रखना अत्यावश्यक है, क्योंकि आज की सभी पूँजीवादी ताकतें उनकी दुश्मन हैं और उनके शस्त्रागार हथियारों  से भरे हुए हैं।


मुझे याद है, कैसे सोवियत संघ ने अपने नि:शस्त्रीकरण प्रस्तावों से उन देशों को चौंका दिया था, जो शान्ति-प्रिय होने की बातें करते थे। सोवियत संघ ने ऐसा इसलिए किया था, क्योंकि उनका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ताकत बढ़ाते जाना नहीं है – शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था और जनता की आजीविका के साधनों को सबसे कुशलता से और व्यापक रूप से विकसित करके अपने आदर्शों को ज़मीन पर उतारना ही उनका मकसद है – उनके इस मकसद के लिए अत्यन्त ज़रूरी है, बाधारहित शान्ति।
(1930)
अक्‍टूबर क्रान्ति शतवार्षिकी विशेषांक


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