Wednesday, 10 January 2018

वैकल्पिक समाज की तलाश

वैकल्पिक समाज की तलाश

बाबा मायाराम द्वारा लिखा राष्ट्रीय विकल्प सन्गम पर लेख 

(विकल्प सन्गम  से लिया गया लेख )


संगम की सोच है कि भविष्य कैसा होगा। 
समाज, संस्कृति, राजनीति पर क्या सोच होगी।
 क्या सामूहिक दृष्टिकोण व मूल्य होंगे। 
इनकी तलाश ही विकल्प संगम की कोशिश है।


विकल्प संगम 

शंकर सिंह ने जब गीत गाया तो सब लोग झूम उठे। गीत का सार यह था कि मैंने सोना-चांदी, बंगला-गाड़ी नहीं मांगा, सिर्फ स्कूल में पढ़ाई, अस्पताल में दवाई मांगी। सूचना का अधिकार मांगा। शंकर सिंह, किसान मजदूर शक्ति संगठन के कार्यकर्ता हैं और इस संगठन ने स्थानीय स्तर से सूचना के अधिकार की मांग को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई, जो बाद में कानून बना।


अरावली पहाड़ की तलहटी में राजस्थान के उदयपुर के पास विद्या भवन के प्रकृति साधना केन्द्र में विकल्प संगम आयोजित हुआ। 27 से 29 नवंबर, 2017 तक संपन्न इस संगम  को शिक्षांतर और कल्पवृक्ष ने संयुक्त रूप से आयोजित किया था जिसमें देश भर के करीब सौ प्रतिभागी शामिल हुए। प्रतिभागियों में विविध रूचियों, अलग अलग विचारधाराओं से जुड़े लोग एक साथ आए। इसमें युवा, चिंतक, शोधकर्ता व वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे।

विकल्प संगम के बारे में बताने से पहले यह जानना जरूरी होगा कि इसकी जरूरत क्यों है। कल्पवृक्ष के संस्थापक सदस्य आशीष कोठारी कहते हैं कि वर्तमान विकास के नकारात्मक नतीजे आ रहे हैं। पर्यावरण, समुदाय और आजीविका पर इसका प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है, इसलिए इसका विकल्प चाहिए। इस दिशा में देश भर में कई कोशिशें हो रही हैं, जो बिखरी हुई हैं। यह हमारी विविधता और समृद्धि को दर्शाती है। ऐसे विकल्प संगम का उद्देश्य हैं, हम उन्हें समझें, उन्हें अनुभव सुनें, और उन्हें एक समग्रता में सामने लाएं।
उन्होंने कहा संघर्ष करने वाले मिल जाते हैं, पर विकल्प पर काम करने वाले नहीं।  संगम की सोच है कि आगे का भविष्य कैसा होगा। समाज, संस्कृति, राजनीति पर क्या सोच होगी। क्या सामूहिक दृष्टिकोण व मूल्य होंगे। इनकी तलाश ही विकल्प संगम की कोशिश है।


विकल्प संगम में चिपको आंदोलन और बीज बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता विजय जड़धारी थे, जिन्होंने चिपको के अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि चिपको आंदोलन 70 के दशक में हुआ। इसके बाद हरे पेड़ों के व्यावसायिक कटान पर कानूनन रोक लगी। पर्यावरण मंत्रालय बना। पर्यावरण के बारे में व्यापक चेतना जगी।  बीज बचाओ आंदोलन 80 शुरू हुआ। इसके बाद जैविक खेती की सोच बनी। परंपरागत बीजों को बचाने बीज बैंक बने। अब जैविक खेती की बात हर जगह होने लगी। विजय जड़धारी का गांव जड़धार है, वहां उनके प्रयास से सूखे व उजाड़ जंगल को फिर से हरा-भरा बनाने का अनूठा काम हुआ है।

उत्तराखंड की माटी संगठन की मल्लिका विरदी ने संगठन के अनुभव साझा किए। उनका संगठन घरेलू हिंसा के खिलाफ शुरू हुआ था, अब राजनीति में सहभागिता, वन व जल संसाधनों का प्रबंधन और बीज विविधता पर काम करता है। वे एक शहरी परिवेश से निकलकर उत्तराखंड के सरमौली गांव में रह कर महिलाओं के साथ इन्हीं सब अलग-अलग मुद्दों पर काम करती हैं।

महाराष्ट्र, गढ़चिरौली से आए मोहन हीराबाई हीरालाल ने समता, अहिंसा और प्राकृतिक संसाधनों पर राज्य की माल्कियत से मुक्ति की जरूरत जताई। उन्होंने कहा वैकल्पिक समाज में यह मूल्य समता और अहिंसा के मूल्य जरूरी हैं। टिम्बकटू कलेक्टिव के बबलू ने रंगभेद पर एक गीत गाकर इसके खिलाफ संदेश दिया।


दयपुर शिक्षांतर के मनीष जैन ने कहा कि वर्तमान शिक्षा युवाओं में निराशा का भाव पैदा करती है। वे स्वयं स्वराज यूनिवर्सिटी के माध्यम से वैकल्पिक शिक्षा का प्रयोग कर रहे हैं जिसमें स्कूल छोड़ चुके छात्र-छात्राओं को अपनी रूचि के मुताबिक पढ़ाई करने का मौका मिलता है। वे कहते हैं सभी बच्चों के अंदर एक बीज है, अगर मौका मिले तो वह बीज फल फूल सकता है। यानी बच्चों में कई तरह की प्रतिभाएं हैं, उन्हें बढ़ने का मौका मिलना चाहिए।


इस तरह देश भर में विकल्प गढ़ने में कई समूह, संस्थाएं, व्यक्ति व आंदोलन काम कर रहे हैं। नदियों,जमीनों, नदियों, जंगलों, पहाड़ों, खेती और उनको सींचने- संवारने की कोशिशें चल रही हैं। इस तरह की कई कहानियां कल्पवृक्ष की विकल्प संगम नाम की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं और कई जगह अलिखित व बिखरी हुई हैं।
तीन दिनों तक कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने अनुभव साझा किए। वैकल्पिक राजनीति, वैकल्पिक मीडिया, पर्यावरण के कई पहलुओं, पर्यटन, लिंगभेद और वैकल्पिक चिकित्सा पर बातचीत हुई। पारम्परिक ज्ञान पर आधारित जागरण जन विकास समिति, उदयपुर के काम की चर्चा हुई।

कुल मिलाकर, यहां हुई बातचीत और समूह चर्चा से कुछ बातें मोटे तौर वैकल्पिक समाज व उसकी दृष्टि के बारे में कही जा सकती है। इसके लिए पर्यावरण, सामाजिक न्याय, लोकतंत्र, आर्थिक लोकतंत्र, ज्ञान और संस्कृति की विविधता जरूरी है।


सरल ढंग से कहें तो विकल्प विराटता में नहीं, लघुता में हैं। केन्द्रीकृत समाज की जगह विकेन्द्रीकरण पर जोर देना होगा। पर्यावरण यानी जल, जंगल, जमीन के आधिपत्य पर नहीं, साहचर्य में है। यानी उसके साथ जीने में है। धरती के साथ जुड़ाव में है, न कि उसके अतिदोहन में है। हमें ऐसा रास्ता अपनाना होगा, जिसमें पर्यावरण का कम से कम नुकसान हो। समता व बराबरी का समाज हो, शोषणमुक्त हो,  क्योंकि गैर बराबरी के समाज में तामझाम व दिखावा की संस्कृति होती है, जो ज्यादा प्रकृति का दोहन करती है। स्पर्धा नहीं परस्पर सहयोग पर आधारित समाज बनाना होगा। असीमित व अतिदोहन का नहीं बल्कि इसकी सीमा बनानी होगी।   

Previous link:

National Vikalp Sangam, Udaipur: Confluence of alternatives 27-29 November, 2017


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