वैकल्पिक समाज की तलाश
से लिया गया लेख )
उत्तराखंड की माटी संगठन की मल्लिका विरदी ने संगठन के अनुभव साझा किए।
उनका संगठन घरेलू हिंसा के खिलाफ शुरू हुआ था, अब राजनीति में सहभागिता, वन
व जल संसाधनों का प्रबंधन और बीज विविधता पर काम करता है। वे एक शहरी
परिवेश से निकलकर उत्तराखंड के सरमौली गांव में रह कर महिलाओं के साथ
इन्हीं सब अलग-अलग मुद्दों पर काम करती हैं।
महाराष्ट्र, गढ़चिरौली से आए मोहन हीराबाई हीरालाल ने समता, अहिंसा और
प्राकृतिक संसाधनों पर राज्य की माल्कियत से मुक्ति की जरूरत जताई।
उन्होंने कहा वैकल्पिक समाज में यह मूल्य समता और अहिंसा के मूल्य जरूरी
हैं। टिम्बकटू कलेक्टिव के बबलू ने रंगभेद पर एक गीत गाकर इसके खिलाफ संदेश
दिया।
उदयपुर शिक्षांतर के मनीष जैन ने कहा कि वर्तमान शिक्षा युवाओं में
निराशा का भाव पैदा करती है। वे स्वयं स्वराज यूनिवर्सिटी के माध्यम से
वैकल्पिक शिक्षा का प्रयोग कर रहे हैं जिसमें स्कूल छोड़ चुके
छात्र-छात्राओं को अपनी रूचि के मुताबिक पढ़ाई करने का मौका मिलता है। वे
कहते हैं सभी बच्चों के अंदर एक बीज है, अगर मौका मिले तो वह बीज फल फूल
सकता है। यानी बच्चों में कई तरह की प्रतिभाएं हैं, उन्हें बढ़ने का मौका
मिलना चाहिए।
इस तरह देश भर में विकल्प गढ़ने में कई समूह, संस्थाएं, व्यक्ति व
आंदोलन काम कर रहे हैं। नदियों,जमीनों, नदियों, जंगलों, पहाड़ों, खेती और
उनको सींचने- संवारने की कोशिशें चल रही हैं। इस तरह की कई कहानियां
कल्पवृक्ष की विकल्प संगम नाम की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं और कई जगह अलिखित व
बिखरी हुई हैं।
तीन दिनों तक कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने अनुभव साझा किए। वैकल्पिक
राजनीति, वैकल्पिक मीडिया, पर्यावरण के कई पहलुओं, पर्यटन, लिंगभेद और
वैकल्पिक चिकित्सा पर बातचीत हुई। पारम्परिक ज्ञान पर आधारित जागरण जन
विकास समिति, उदयपुर के काम की चर्चा हुई।
सरल ढंग से कहें तो विकल्प विराटता में नहीं, लघुता में हैं।
केन्द्रीकृत समाज की जगह विकेन्द्रीकरण पर जोर देना होगा। पर्यावरण यानी
जल, जंगल, जमीन के आधिपत्य पर नहीं, साहचर्य में है। यानी उसके साथ जीने
में है। धरती के साथ जुड़ाव में है, न कि उसके अतिदोहन में है। हमें ऐसा
रास्ता अपनाना होगा, जिसमें पर्यावरण का कम से कम नुकसान हो। समता व बराबरी
का समाज हो, शोषणमुक्त हो, क्योंकि गैर बराबरी के समाज में तामझाम व
दिखावा की संस्कृति होती है, जो ज्यादा प्रकृति का दोहन करती है। स्पर्धा
नहीं परस्पर सहयोग पर आधारित समाज बनाना होगा। असीमित व अतिदोहन का नहीं
बल्कि इसकी सीमा बनानी होगी।
Previous link:
National Vikalp Sangam, Udaipur: Confluence of alternatives 27-29 November, 2017
********
No comments:
Post a Comment