Clean Kali: All eyes now on govt
http://www.indiawaterportal.org/articles/clean-kali-all-eyes-now-govt
The water of East Kali is heavily polluted. It would hopefully change with the NGT taking notice of it.
Rampura, situated in Bulandshahr district in western Uttar Pradesh, is one of the 1,200 villages on the banks of the 300-km long East Kali, a tributary of the Ganges. The river is named after goddess Kali who, according to the Hindu mythology, is fierce and fights evil by ingesting it.
Till the 1980s, the river was a symbol of purity. Things have changed now with the river turning into a nullah
brimming with industrial effluents. “We used to drink its waters when
young. Today, it's so toxic that forget drinking, I dread touching it,”
says Devendra Kumar Sharma, a resident of Panwadi, a village in Meerut
district. The river’s toxic water now symbolises death and not life.
Foul flows in streams
As per a study by Neer Foundation, a Meerut-based
non-profit working on environmental issues, as the river is polluted,
the groundwater of the area which gets replenished by the river too has
turned into a receptacle for toxic waste. Unsuspecting people, however,
continued to draw water through the handpumps till recent studies rang
an alarm bell.
The study conducted in 2015-16 reveals that in Rampura, the
groundwater recorded a total dissolved solids of 1760 mg/litre, way
above the permissible standard of a maximum of 500 mg/litre for drinking
purposes. Soil stratum was harmed as iron and lead contamination spread
from river water to aquifers (underground reservoirs that hold
groundwater) that are recharged by it.
गंगोत्री के हरे पहरेदारों की पुकार सुनो
https://panipost.in/2017/06/listen-to-the-green-security-of-gangotri/
एक ओर ‘नमामि गंगे’ के तहत् 30 हजार
हेक्टेयर भूमि पर वनों के रोपण का लक्ष्य है तो दूसरी ओर गंगोत्री से
हर्षिल के बीच हजारों हरे देवदार के पेडों की हजामत किए जाने का प्रस्ताव
है। यहां जिन देवदार के हरे पेडों को कटान के लिये चिन्हित किया गया हैं,
उनकी उम्र न तो छंटाई योग्य हैं, और न ही उनके कोई हिस्से सूखे हैं। कहा जा
रहा है कि ऐसा ‘आॅल वेदर रोड’ यानी हर मौसम में ठीक रहने वाली 15 मीटर चौड़ी सड़क के नाम पर किया जायेगा। क्या ऊपरी हिमालय में सड़क की इतनी चौड़ाई उचित है ?
क्या ग्लेशियरों के मलवों के ऊपर खडे पहाड़ों को थामने वाली इस वन संपदा का विनाश शुभ है ? कतई नहीं।
गौर कीजिए कि इस क्षेत्र में फैले
2300 वर्ग किमी क्षेत्र में गंगोत्री नेशनल पार्क भी है। गंगा उद्गम का यह
क्षेत्र राई, कैल, मुरेंडा, देवदार, खर्सू, मौरू नैर, थुनेर, दालचीनी,
बाॅज, बुराॅस आदि शंकुधारी एवं चौड़ी पत्ती वाली दुर्लभ वन
प्रजातियों का घर है। गंगोत्री के दर्शन से पहले देवदार के जंगल के बीच
गुजरने का आनंद ही स्वर्ग की अनुभूति है। इनके बीच में उगने वाली
जडी-बूटियों और यहां से बहकर आ रही जल धाराये हीं गंगाजल की गुणवतापूर्ण
निर्मलता बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
यह ध्यान देने की जरूरत हैं कि यहां की वन प्रजातियां एक तरह से
रेनफेड फाॅरेस्ट (वर्षा वाली प्रजाति) के नाम से भी जानी जाती हैं। इन्ही
के कारण जहां हर समय बारिश की संभावना बनी रहती हैं। गंगोंत्री के आसपास
गोमुख समेत सैकडों ग्लेशियर हैं। जब ग्लेशियर टूटते हैं, तब ये प्रजातियां
ही उसके दुष्परिणाम से हमें बचाती हैं। देवदार प्रधान हमारे जंगल हिमालय और
गंगा..दोनो के हरे पहरेदार हैं। ग्लेशियरों का तापमान नियंत्रित करने में
रखने में भी इनकी हमारे इन हरे पहरेदारों की भूमिका बहुत अधिक है।
No comments:
Post a Comment