भारत में ‘भूख’ से जुड़ी सच्चाई / HUNGER INDEX
भारत में ‘भूख’ से जुड़ी सच्चाई
Date:08-11-17
Date:08-11-17
ग्लोबल
हंगर इंडेक्स बनाए जाने के चार पैमाने हैं- (1) कुपोषण (2) पाँच वर्ष की
आयु तक मृत्यु दर (3) बच्चों में उम्र के अनुसार ऊँचाई, तथा (4) ऊँचाई के
अनुसार वजन। दरअसल, ये चारों ही आधार कहीं से भी भूख या ‘हंगर’ का पैमाना
नहीं माने जा सकते। इसको ‘वल्र्ड चाइल्ड न्यूट्रिशन रिपोर्ट’ कहा जाना अधिक
सटीक होगा।सच्चाई यह है कि नेशनल सैंपल सर्वे डाटा में भूख को शामिल करने
वाले कुछ देशों में भारत शामिल है। इसके सर्वेक्षण से पता चलता है कि 1983
में 16 प्रतिशत जनता के भूख से पीड़ित होने का स्तर 2004-05 में गिरकर 1.9
प्रतिशत रह गया है। क्या यह अपने आप में एक उपलब्धि नहीं है? लेकिन सरकार
एवं अन्य विभाग अगर भूख के इन आँकड़ों की सच्चाई को स्वीकार कर लेते हैं, तो
हमारी दो-तिहाई जनता को ‘भूख’ के नाम पर दी जाने वाली सब्सिडी पर ऊंगलियाँ
उठने लगेंगी।
नोबल पुरस्कार विजेता एंगल डेटन एवं जीन
ड्रेज का अध्ययन कहता है कि 25 प्रतिशत गरीब जनता में कैलोरी ग्रहण करने का
स्तर गिर गया है। ऐसा तब हुआ है, जब उनकी आय में वृद्धि हुई है। उनकी बढ़ी
हुई आय ने उनका रूझान अधिक कैलोरी ग्रहण करने के बजाय कुछ अन्य सामग्री की
खरीदारी की तरफ कर रखा है।दूसरे नजरिए से देखें, तो मशीनीकरण ने कैलोरी की
आवश्यकता को ही कम कर दिया है। जहाँ लोगों को मीलों पैदल चलना पड़ता था,
वहाँ अब बस या साइकिल से जाया जा सकता है। कृषि, उद्योग एवं अन्य सेवाओं
में बढ़ती मशीनों के प्रयोग ने मानवीय श्रम को कम कर दिया है। लेकिन कैलोरी
ग्रहण के पैमाने को पहले जैसा ही रखा गया है। यही कारण है कि हमें कुपोषण
इतना बढ़ा हुआ दिखाया जाता है।
नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अरविन्द
पनगढ़िया ने भी बच्चों में उम्र के अनुसार ऊँचाई एवं ऊँचाई के अनुसार वजन का
अध्ययन करने के अंतरराष्ट्रीय मानकों को गलत ठहराया था। कई अफ्रीकी देशों
की तुलना में भारत में नवजात शिशु, शिशु एवं बाल मृत्यु दर, मृत-जन्म शिशु
एवं प्रजनन के दौरान मातृ-मृत्यु दर बहुत कम है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय मानक
ऐसा दिखाते हैं कि इन मामलों में कई अफ्रीकी देशों की तुलना में भारत में
स्थिति बहुत खराब है।
समस्याओं की वास्तविकता
यदि ग्लोबल हंगर इंडेक्स की
अतिश्योक्तियों को नजरंदाज कर भी दिया जाए, तो भी भारत में समस्याएं तो हैं
ही। भारत में प्रति 1000 पर बाल-मृत्यु दर 47 है, जबकि बांग्लादेश में यह
38, इंडोनेशिया में 27 और श्रीलंका में 10 है। भारत में इस उच्च मृत्यु दर
का कारण अपर्याप्त टीकाकरण एवं भूख के बजाय पोषक तत्वों की जानकारी का
अभाव, स्वच्छ जल एवं सामान्य स्वच्छता की कमी है।
कई अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि
लिंगभेद के कारण भी समस्या विकट बनी हुई है। एक ग्रामीण जब पर्याप्त भोजन
मिलने की बात कहता है, तो उसमें वह अपनी पत्नी एवं बेटियों को शामिल नहीं
करता। यह सीधे-सीधे लिंगभेद की समस्या है न कि भोजन की। चाहे कुछ भी हो, इस
समस्या का भी अंत होना ही चाहिए। नारी सशक्तीकरण एवं स्वयंसेवी संस्थाओं
की मदद से गर्भवती महिलाओं एवं कन्याओं के प्रति सोच में परिवर्तन लाया जा
सकता है।
कई शोध यह दिखाते हैं कि भारत में
स्वच्छता की कमी के कारण बच्चों में डायरिया की समस्या आम है। इसके कारण
उनमें पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को भरे हुए
पेट भी कुपोषित शरीर दिखाई पड़ते हैं। इसका हल खाद्य सब्सिडी में नहीं,
बल्कि स्वच्छता अभियान में है। इसे कई स्तरों पर चलाया भी जा रहा है।
समाधान
सरकार ने ‘भूख’ की तथाकथित समस्या से
निपटने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, एकीकृत बाल विकास मिशन, स्वच्छ
भारत एवं राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन जैसे अभियान चलाए हैं। इतना ही नहीं
प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना चलाई गई है, जिसके माध्यम से गर्भवती एवं
दूध पिलाने वाली माताओं के खातों में सीधे धनराशि जमा की जाएगी। अब देखना
यह कि ये योजनाएं धरातल पर कितनी कारगर सिद्ध होती हैं।एकीकृत बाल विकास
योजना के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं को 45 महीने की अवधि
में 10,322 रुपये का राशन देने की व्यवस्था में अनेक अनियमितताओं का पता
चला है।जन्म के एक घंटे के अंदर ही बच्चे को माँ का दूध दिए जाने को
प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। जन्म के छः मास तक केवल माँ के दूध पर
बच्चों की निर्भरता को बढ़ाकर प्रतिवर्ष 1,56,000 शिशु मृत्यु को कम किया जा
सकता है।
इन सबके अलावा भी कुछ ऐसे उपाय हैं, जिन्हें अपनाए जाने पर ग्लोबल हंगर इंडैक्स की सूची में भारत की स्थिति को सुधारा जा सकता है।
- नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन के माध्यम से ‘भूख’ की गणना की जानी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय संगठन इसको नजरअंदाज नहीं कर सकेंगे।
- मशीनीकरण को मद्देनजर रखते हुए कैलोरी की तय सीमा की पुनः समीक्षा की जानी चाहिए। वैश्विक संस्थाओं को इन्हें स्वीकार करने हेतु तैयार किया जाए।
- स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत भारत को खुले में शौच मुक्त करने वाले पहले राजनेता के रूप में नरेन्द्र मोदी की छवि को स्थापित किया जाना चाहिए। इसके माध्यम से प्रधानमंत्री सीधे-सीधे कुपोषण की समस्या को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।
- सरकार को चाहिए कि वह लिंगभेद पर लोगों की सोच में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करे। ऐसा करके मातृत्व मृत्यु दर एवं खासकर बालिकाओं में उम्र के अनुसार गिरती ऊँचाई पर नियंत्रण किया जा सकेगा।
- खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली माताओं को धन मुहैया कराने के वायदे को जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए।
समाचार-पत्रों पर आधारित।
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