LOK SABHA:
New Union Ministry for the Development of Himalayan States
11 JULY 2014
(1)
Title: Further discussion on the sustainable development goals raised by Shri Ramesh Pokhriyal Nishank (not concluded)..
DISCUSSION UNDER RULE 193
Sustainable Development Goals ... Contd.
HON. DEPUTY SPEAKER: Now we take up discussion under Rule 193; Dr. Ramesh Pokhriyal Nishank to continue.
डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक (हरिद्वार): माननीय उपाध्यक्ष जी, मैं आपका आभारी हूं कि आपने नियम 193 के अंतर्गत सतत विकास और लक्ष्य़ पर इस चर्चा को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया है। मनुय ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है और उस मानव के जीवन को बेहतर करने के लिए पूरी दुनिया के 189देशों ने जिस तरीके से संयुक्त राट्र संघ में संघाऩ करने और आगे बढ़ने का संकल्प लिया, उस दिशा में मैं कहना चाहता हूं - “अभी भी है जंग जारी,वेदना सोई नहीं है, मनुजता होगी धरा पर संवेदना खोई नहीं है।” निश्चित रूप में संवेदनाएं अभी भी जिंदा हैं और वेदना भी खोई नहीं है। इसलिए उस वेदना को मिटाने की दिशा में जो यह संघाऩ है, जो यह रास्ता है, जो सतत विकास का लक्ष्य इतने देशों ने निर्धारित किया है, मेरा देश भारत भी उस दिशा में सतत प्रयासरत है। कल हम लोग पर्यावरण पर चर्चा कर रहे थे और यह चर्चा हो रही थी कि पर्यावरण जीवन है और पर्यावरण का संरक्षण बहुत जरूरी है। यह पूरी दुनिया के लिए जरूरी है और उसमें उन लक्ष्यों में, जो सतत विकास के लक्ष्य हैं, उसमें वनों का विकसित होना, वनों की समृद्धि भी एक बहुत महत्वपूर्ण लक्ष्य है। इसलिए मैं सोचता हूं कि यदि वन नहीं है तो जल नहीं है और जल नहीं है तो जीवन नहीं है। इसलिए वनों का विकास होना बहुत जरूरी है और इसी संदर्भ में मैं कहना चाहता हूं - “वन में वृक्षों का वास रहने दो, झील, झरनों में सांस रहने दो, वृक्ष होते हैं वस्त्र जंगल के,छीनों मत ये लिबास रहने दो।” मैं इसलिए कहना चाहता हूं कि जो वन हैं, इन वनों पर आधारित न केवल पर्यावरण है, जब वन से जल और जल से जीवन है तो सम्पूर्ण मानवता के लिए वन सर्वोपरि होता है। इसलिए इस दिशा में देश और दुनिया के लोगों से मैं आपसे माध्यम से यह अपील करना चाहता हूं - “संभल जाओ ए दुनिया वालों, वसुंधरा पर करो प्रहार नहीं, रब रहता है हर जगह हर पल, प्रकृति पर करो अत्याचार नहीं।” जब भी प्रकृति पर अत्याचार होते हैं तो प्रकृति कहीं न कहीं अपना संतुलन बनाती है। उसी का परिणाम है कि कहीं भूकम्प आता है तो कहीं भूस्खलन होता है और कहीं अतिवृिट होती है तो कहीं खेत, खलिहान, मकान और दुकान सब स्वाहा हो जाते हैं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में पेड़ों का कटान बंद हो, नये वृक्षों का रोपण हो। वैसे मैं वन और पर्यावरण मंत्री जी को बहुत बधाई देना चाहता हूं कि वनों की वृद्धि की दिशा में उन्होंने बहुत अभिनव प्रयोग किया है और लगातार वन समृद्धि बढ़ाने की दिशा में वह प्रयासरत हैं। यदि वनों का संरक्षण नहीं होगा तो तेजी से धरती की जो उणता बढ़ रही है, प्रदूाण भी इसी के कारण बढ़ रहा है, ग्लेशियर पीछे जा रहे हैं और पानी का संकट बढ़ता जा रहा है। जैसा मैंने कहा कि भूस्खलन और भूकम्प आदि तमाम प्रकार की त्रासदियां उसका एक बड़ा कारण है। जब मैं उत्तराखंड का मुख्य मंत्री था तो हिमालय के संरक्षण और संवर्धन के लिए हम लोगों ने हिमनद प्राधिकरण बनाया था। क्योंकि यदि ग्लेशियर पीछे जायेंगे तो हिमालय पर संकट होगा और यदि हिमालय पर संकट होगा तो सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया संकट में आयेगी। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि वन और पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में हिमनदों और ग्लेशियरों का संरक्षण बहुत जरूरी किया जाए, अन्यथा जब भी हिमालय छोटी सी भी करवट लेगा तो वह बहुत बड़े संकट का विाय बन जायेगा।
इसलिए महोदय मैं आपके माध्यम से सरकार से अनुरोध करना चाहता हूं कि इस दिशा में वह गंभीरता से विचार करें। क्योंकि जब भी वनों का कटान होता है, क्षरण होता है तो जो प्राकृतिक आपदा आती है, यह प्राकृतिक आपदा के दंश को हम हिमालयी बैल्ट के तमाम राज्य ज्यादा झेलते हैं। इसलिए इन लक्ष्यों में एक लक्ष्य यह भी होना चाहिए कि जो प्राकृतिक आपदा के मारे लोग हैं, सतत् विकास की दिशा में उन लोगों का पुनर्स्थापन एक समयबद्ध तरीके से हो। श्रीमन्, मैं सोचता हूँ कि चाहे वह केदारनाथ की त्रासदी हो, चाहे वह जम्मू-कश्मीर की आपदा हो, चाहे नेपाल की त्रासदी हो,चाहे पर्वतीय क्षेत्र के तमाम उन राज्यों में जो भूस्खलन, भूकंप, अतिवृिट, और बादल फटने के कारण तबाह हो जाते हैं। यह बहुत बड़ी त्रासदी होती है। मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि जो केदारनाथ की त्रासदी आई थी, जिसमें 24 राज्यों के हजारों लोग हताहत हुए और हजारों लोग आज भी लापता हैं,वे लोग जो आज दो वाऩ बाद भी घाटी से तबाह हो कर बेघर हो गए थे, वे आज भी दर-दर भटकने को मजबूर हैं। वे आज भी अपने परिवार को व्यवस्थित नहीं कर पाए हैं। जो उनकी संपत्ति थी, सब स्वाह हो गई और वे आज भी विकास का मुंह तांक रहे हैं। इसलिए मैं यह कहना चाहता हूँ कि ये व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि समयबद्ध तरीके से उनका पुनर्स्थापन हो क्योंकि हम मानवता के विकास की बात कर रहे हैं। जिन लोगों के सामने इतना बड़ा संकट आता है, उनके जीवन, उनका रहन-सहन और उनके पारिवारिक संरक्षण का लक्ष्य भी इस दिशा में होना चाहिए क्योंकि वााॉ-वााॉ से ये लोग भटक रहे हैं। आज भी इनके सिर पर कोई छत नहीं है और तन पर पहनने के लिए कपड़े के लिए दर-दर भटकते हैं। इस विाय पर मैं इसलिए कह रहा हूँ, मेरे मन में यह विचार आया क्योंकि केदारनाथ की त्रासदी के दो साल के बाद भी हम उन लोगों को व्यवस्थित नहीं कर पाए तो एक ओर हम मानवता की बात कर रहे हैं, विकास की बात कर रहे हैं और दूसरी ओर ऐसे लोगों को चौराहे पर छोड़ने की स्थिति पैदा होती है। इसलिए मेरा इसमें यह भी सुझाव है कि जो लोग बेघर हो गए हैं, जो नवयुवक दर-दर भटक रहे हैं, उनको एक समयबद्ध तरीके से संरक्षण मिलना चाहिए। दूसरा सुझाव है कि जो केंद्र सरकार धनराशि देती है, क्योंकि केदारनाथ आपदा की ही जो बात आई है, उसमें भारी अनियमितताएं हुई हैं। इसीलिए ये वित्तीय अनियमितताएं सूचना के अधिकार अधिनियम में भी आई हैं। एक-एक बोतल पानी सौ-दो सौ रूपये का बिका है, आधा लीटर दूध दो-ढाई सौ रूपये में आया है। स्कूटर पर तीस-तीस लीटर डीजल लिया गया है और जब पकड़ में आया तब पता चला कि वह ट्रक का नंबर नहीं स्कूटर का नंबर है।
समाचार पत्रों में यह खबर भी आई कि सीएजी ने यह भी कहा है कि लगभग 460 करोड़ रूपये की आपदा राहत राशि का कोई हिसाब-किताब नहीं मिल रहा है। इसलिए ये जो बड़ी अनियमितताएं होती हैं, जिनमें भारत सरकार पैसा देती है, देश भर के लोग चंदा कर के उन आपदा पीड़ितों की सहायता के लिए करते हैं। ऐसी राशि में किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। इसलिए मेरा आग्रह यह भी है कि इसके लिए एक जांच आयोग निश्चित बैठना चाहिए ताकि यह जो पैसा है, जो सांसदों का पैसा जाता है, केंद्र का पैसा जाता है, लोगों से जाता है, विभिन्न क्षेत्रों से जाता है,इसका संरक्षण हो सके और इसको व्यवस्थित किया जा सके। इसलिए मैं एक मांग यह करना चाहता हूँ कि सतत् विकास में जो प्रकृति की मार से लोग बेघर हुए हैं, वे देश और दुनिया के किसी भी क्षेत्र में क्यों न हों, विशेाकर मैं हिमालय राज्यों के बारे में जरूर कहना चाहता हूँ कि यह विशेा लक्ष्य रखा जाए, उसके तहत ताकि वे लोग अपने जीवन का यापन कर सकें। जो पर्यावरण का क्षेत्र है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। पर्यावरण पूरे विश्व को अस्थिर करता है। पर्यावरण सिर्फ वन और इसी का पर्यावरण नहीं है। पर्यावरण तो मानसिक पर्यावरण भी है, मानसिक प्रदूाण भी बढ़ रहा है। उस पर्यावरण को भी व्यवस्थित करने की जरूरत है, क्योंकि मानसिक पर्यावरण ठीक रहेगा तो सारे पर्यावरण ठीक हो सकते हैं और पहले इस सतत् अभियान में उस मानसिक पर्यावरण को भी ठीक करने की जरूर है। पूरी दुनिया में मानसिक प्रदूाण जो बैठा हुआ है, उस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। आदरणीय मोदी जी की सरकार के नेतृत्व में भारतीय विदेश नीति ने विभिन्न आयामों को छुआ है, उसके लिए भी मैं सरकार को बधाई देना चाहता हूँ। जहां पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन की दिशा में आदरणीय मंत्री जी के अगुवाई में, प्रकाश जावड़ेकर जी की अगुवाई में तमाम नए कदमों को उठाया गया है, वहीं जो वैश्विक साझेदारा भारत की हुई है, उसमें भी हम काफी आगे निकले हैं। श्रीमन्, मैं समझता हूँ कि सम्मान,संवाद, समृद्धि, सुरक्षा, संस्कृति और सभ्यता भारतीय विदेश नीति के आधार स्तम्भ हैं। इनके आधार पर हम पूरी दुनिया से समन्वय कर रहे हैं,सहभागिता कर रहे हैं और मैं समझता हूँ कि इसी सदन में आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने भी कहा था कि हम इस तरीके से दुनिया के साथ काम करेंगे ताकि हम समृद्ध हों, हमारे लोगों के हाथों को काम भी मिले और यहाँ का पैसा बाहर न जाए। एक उदाहरण के रूप में मैं कहना चाहता हूँ कि लगभग2.5 लाख करोड़ के रक्षा क्षेत्र में जो यत्र हम आयात करते थे, आज हमारी सरकार ने एक ठोस पहल की है कि जो उपकरण बाहर से आते थे, अब उन देशों, उन कम्पनियों को यहाँ आमत्रित करके यहीं उनका उत्पादन होगा, सहभागिता के साथ उत्पादन होगा, यहाँ के हाथों को काम मिलेगा और यहाँ का पैसा यहीं स्थिर होगा। इसलिए भारतीय सभ्यता के मूलमंत्र, वैसे भी "वसुधैव कुटुम्बकम " हमारी नीति रही है और "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः" की बात हमने हमेशा कही है। भारत सशक्त होगा, सबल होगा तो दुनिया को भी सुख और शांति मिलेगी। विदेश नीति के तहत सरकार ने सफलतापूर्वक 94 देशों के साथ संपर्क स्थापित किया है, इसके लिए भी मैं सरकार को बधाई देना चाहता हूँ। 21 जून, 2015 को अंतर्राट्रीय योग दिवस घोिात करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने जिस निठा से, जिस शिखर पर, जिस प्रखरता से सारी दुनिया को एक सूत्र में पिरोकर उनकी सुख और समृद्धि और स्वास्थ्य की दिशा में योग को उसके शिखर पर पहुँचाया, हमारे प्रधानमंत्री जी ने यह विश्व के इतिहास में एक अलग सी छाप छोड़ी है। मैं समझता हूँ कि 177 देशों ने मोदी जी के इस प्रस्ताव को सहाऩ स्वीकार किया है। निश्चित रूप में संयुक्त राट्र की आम सभा को हिन्दी में संबोधित करना, अटल बिहारी वाजपेयी जी के बाद नरेन्द्र मोदी जी दूसरे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने संयुक्त राट्र में हिन्दी भााा में अपना भााण दिया। अभी हम बातचीत कर रहे थे कि अंत्तोगत्वा हिन्दी तो देश को एक सूत्र में पिरोती है। हिन्दी देश की जान है, शान है, मान है और अभिमान है, इसलिए हिन्दी को सारी दुनिया में कैसे पहुँचाया जा सकता है, क्योंकि इस देश का आधार भी उस पर निर्भर करता है और पूरी दुनिया ने उसको स्वीकार किया है। पिछले दस महीनों में देश के विदेशी निवेश में 162 प्रतिशत की अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज हुई है, इसके लिए भी मैं सरकार को बहुत बधाई देना चाहता हूँ। मॉरीशस से लगभग 50 हजार करोड़ का निवेश, सिंगापुर से लगभग 35 हजार करोड़ का निवेश, नीदरलैंड से लगभग 20हजार करोड़ का निवेश, जापान से लगभग 12 हजार करोड़ का निवेश और इसी श्रंखला में अमेरिका से 10 हजार करोड़ का निवेश किया गया है। इसकी सूचना हमें प्राप्त हुई है। कुल मिलाकर दुनिया के तमाम देश लगातार हिंदुस्तान के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। यह हमारे लिए सौभाग्य है। एक समय था जब लोग हिंदुस्तान से बचना चाहते थे। आज ऐसा समय है कि हिंदुस्तान के साथ मिलकर पूरी दुनिया के लोग गौरव महसूस कर रहे हैं।
महोदय, जहां तक वैश्विक साझेदारी का प्रश्न है, लक्ष्यों की सूची में अभी हम 8वें स्थान पर हैं, लेकिन मुझे लगता है कि जिस तेज गति से हम काम कर रहे हैं, निश्चित रूप से हम बहुत तेजी से आगे आएंगे। अगर इसकी महत्ता देखी जाए तो यह समूचे लक्ष्यों को आच्छादित कर समान विश्व व्यवस्था की कल्पना करता है, जहाँ पर सभी लोग स्वतंत्रता से गरिमापूर्ण जीवनयापन करने के साथ-साथ विचारों की अभिव्यक्ति के लिए भी स्वतंत्र होंगे। यह भी आवश्यक है कि तेजी से बदलते विश्व के परिदृश्य में विश्व के समूचे देश विकास की इस मुख्यधारा में शामिल हों। जैसा मैंने कहा कि विश्व में घोर असमानता है, मैं उसके आँकड़े नहीं देना चाहता हूँ, लेकिन यदि विश्व के 189 देश, जिन्होंने इस परिकल्पना में, जिन्होंने एक सूत्र में बंधकर के सतत विकास का संकल्प लिया है, यदि उन देशों को भी देखा जाए तो उनमें भी काफी कुछ असमानता है। उनको भी समानता में लाने की जरूरत है। जहाँ विकसित देश अपने नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक जीवन की सुरक्षा के साथ वैभवपूर्ण जीवन उपलब्ध कराते हैं, वहीं गरीबी,भुखमरी की मार झेल रहे कई देश अपने नागरिकों को बुनियादी सुविधा तक उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं। ऐसी स्थितिओं का सफलतापूर्वक मुकाबला तभी किया जा सकता है, जब विश्व के सभी देश पारस्परिक सहयोग करें। जो कमजोर है, उसे मदद मिले और यह तभी होगा जब एक देश दूसरे देश की मदद करेगा और एक-दूसरे की सहयोगात्मक भावना से ओत प्रोत होकर के कल्याण की भावना से उस मिशन को आगे बढ़ाएंगे।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है, जैसे मैंने कहा, हम तो सदैव वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना करने वाले लोगो में रहे हैं। इस देश का इतिहास है कि इस देश ने सारे विश्व के लोगों के कल्याण के लिए अपने को अर्पित किया है और इसलिए हम चाहेंगे कि हिन्दुस्तान मज़बूत हो क्योंकि दुनिया की सुख-शांति और समृद्धि के लिए हिन्दुस्तान के रास्ते से ही होकर मानवता जाती है। इसलिए यह जो साझेदारी है और मूल्यों को सही मायने में लागू करना है, इसके लिए सशक्त नीतियों का सृजन करना पड़ेगा। जब तक समयबद्ध नीतियाँ नहीं होंगी, तब तक सशक्त तरीके से हम सतत् विकास के लक्ष्य पर नहीं पहुँच पाएँगे। सुशासन, परस्पर सहयोग, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, कार्यक्रम में सहभागिता सुनिश्चित करते हुए हमें विश्व के सबसे पिछड़े, गरीब और उपेक्षित वर्ग को ऊपर लाने की कवायद अभी शुरू करनी है।
श्रीमन्, मैं कहना चाहता हूँ कि चाहे विज्ञान और प्रौद्योगिकी का क्षेत्र हो या कोई भी क्षेत्र हो, तमाम क्षेत्रों में हमने निश्चित रूप से आगे बढ़कर काम किया है और अभी आवश्यकता है कि हम और तेज़ी से आगे बढ़ें। मैं इस अवसर पर यह कहना चाहता हूँ कि जहाँ 2000 से लेकर 2015 तक सहस्त्राब्दि विकास के लक्ष्य थे, अब 2015 से 2015 से 2030 तक उसको सतत् विकास की प्रक्रिया में लाने का विाय है। मैं समझता हूँ कि कुछ कदम हमें और उठाने होंगे। गरीब, विकासशील देशों को हर पार्ट पर आर्थिक नीतियों, ढाँचागत विकास, सुशासन और मेहनत करने हेतु प्रोत्साहन दिये जाने की ज़रूरत है।
दूसरा, समूचे विश्व में कौशल विकास, रोज़गार सृजन, उद्यमिता विकास पर एक समन्वित नीति बहुत ज़रूरी है ताकि सारी दुनिया के देश एक दूसरे से जुड़े हों जहाँ कमी हो, दूसरे क्षेत्र का व्यक्ति वहाँ आकर खड़ा हो सके। तीसरा, निजी क्षेत्रों को गरीब और उपेक्षित क्षेत्रों में जाने के लिए प्रेरित करना है और विशेाकर स्वास्थ्य, सूचना और संचार की नवीनतम प्रौद्योगिकी से गरीब लोगों को सुसज्जित करने के मिशन की भी ज़रूरत है,क्योंकि अभी वे सूचना प्रौद्योगिकी से बहुत दूर हैं। उनमें शक्ति तो है, मिशन भी है, विज़न भी है, वे चाहते भी हैं, लेकिन मार्ग नहीं है। उस मार्ग को उनको देना पड़ेगा। जो कर्ज़ में डूबे हुए देश हैं, उनको आर्थिक मदद करने के लिए उनके समूचे कायाकल्प की ज़िम्मेदारी पूरे विश्व समुदाय की है। छोटे, गरीब और संसाधनहीन देशों को प्रजातंत्र और सुशासन के रास्ते पर लाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने हेतु मदद दी जानी चाहिए।
श्रीमन्, अंत में मैं कहना चाहता हूँ कि जिस तरीके से हम सतत् विकास के लक्ष्यों पर आगे बढ़ रहे हैं, निश्चित रूप से भारत जिस गति से हर क्षेत्र में बढ़ रहा है, हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुवाई में चौतरफा विकास हो रहा है, हर क्षेत्र में ऊँचाइयों तक गए हैं। इसी आधार पर मैं समझता हूँ कि सतत् विकास के लक्ष्य में निश्चित रूप में हम बहुत आगे बढ़ेंगे। अंत में मैं यह कहकर अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा -
“हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से नई गंगा निकलनी चाहिए।
मेरे दिल में न सही, तेरे दिल में ही सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।”
DR. KULMANI SAMAL (JAGATSINGHPUR): Hon. Deputy-Speaker, Sir, I am thankful to you for giving me this opportunity time to participate on this Discussion under Rule 193.
The idea of the Sustainable Development Goals has been emerged on the backdrop of the Millennium Development Goals. The idea ‘Millennium Development Goals’ is the brainchild of the United Nations; and the idea has revolutionized the mindset to set goals in order to implement various plans. What are those plans? In simple terms, I could say that the plans were made to proceed in the direction of goal and the goal is to end extreme poverty, hunger, preventable diseases etc.
The idea of the Millennium Development Goals was applied first in the undeveloped regions of the African Continent; and it is claimed by the United Nations that this Millennium Development Goal has become an instrument in reducing the poverty. Subsequently, the reduction in poverty has made them to control various types of diseases in African countries.
The goals of sustainable development are many in numbers. I am emphasizing upon the goals because ‘goals’ push the person to achieve something in a determined manner. It puts the pictures in front of you that yes, we have to achieve our goals and reach the destination at any cost. Our goals of Sustainable Development Goals Project are:- to end poverty; to end hunger; to ensure healthy lives; to reduce infant and maternal mortality rates; to fight against HIV/AIDS; to ensure inclusive and equitable quality education; to achieve gender equality and empower all women and girls; to ensure availability of water and sanitation; to ensure access to affordable, reliable, sustainable and modern energy; to promote economic growth and productive employment; to build resilient infrastructure, promote sustainable industrialization; to reduce inequality; to make cities and human settlements secured and sustainable; to take urgent action to combat climate change and its impacts; to protect and restore forests; to provide justice to all, etc.
The Sustainable Development Goals project from these points gives a clear cut idea to achieve economic development which could generate employment for future. Secondly, the destination of social development, if achieved, could distribute resources among its people and make them feel that they are equal. The environmental development will make the people realize the quality of air, water and physical surrounding and the same could be preserved for the future generation also.
I can say it is a very ambitious project. Although the project offers the opportunity for even greater advancement with so many goals, ambition must be balanced logically. Why I am saying that balance should be there because I sense contradiction in the parameters of goals, if we are directed to achieve all of them simultaneously. For example, the goals to protect the environment conflict with the goals to end poverty and promote industrialization. Because environmental sustainability and industrialization do not run together as they affect each other. So we should take care of the goals step by step rather than targeting all to achieve at a time. If poverty and unemployment is there, equality cannot be achieved and equal access to education cannot be realised. Moreover, in my opinion, we are a diversified society having a vast population, different religions, varied languages, culture, belief system, geographical location, etc. Hence, we have to implement the project and set the goals as per the requirement of a specific area, specific community etc. The United Nations claim that under the Millennium Development Goals, many countries were able to achieve universal primary education for children. But how far it is true that the quality of teaching, curriculum and post-primary education were up to the standard. If it does not meet the equality at that level how can we claim that equality could be restored for the next generation? Where is the meaning of sustainable development then? Though it sounds well that we can do this, we can do that but I feel it is a bit impractical and over enthusiastic in nature.
First of all, I would like to state that the first point the Sustainable Development Goals Project is supposed to deal with is to end poverty. The reasons for poverty are many like climatic factors as climate is responsible for frequent flood, famine, earthquake and cyclone, etc., as they do damage to agriculture. Moreover, absence of timely rain, excessive rain and deficient rain affects severely the country’s agricultural production.
Similarly, the demographic factors, unequal distribution of land and other assets, decline of village industries, immobility of labour, lack of employment opportunities, lack of education, practice of caste system, social customs etc. are major reasons of poverty. So, the problem of poverty is different in nature in various parts of our country. Hence, the reason should be studied and surveyed accordingly in order to determine the therapy to address the problem. Same parameter may not be applicable everywhere.
Further, I could say that the points we have mentioned in our goals are interlinked to each other. If education in all the formats is extended to everybody, there may not be unemployment, there may not be lack of awareness to combat climate change and there may not be inequality. So, it is my suggestion that instead of focussing upon so many goals at a time, we should take five or six goals, like implementation of education equally for everybody, establishment of industries and to strengthen agricultural sector to generate employment etc., which could address all the inclusive problems at one go.
Thank you.
SHRI S.R. VIJAYA KUMAR (CHENNAI CENTRAL): Hon. Deputy speaker, Sir, I thank my beloved leader, hon. Chief Minister of Tamil Nadu, Dr. Puratchi Thalaivi Amma for this opportunity.
A great saying goes like this : “If you want to reach a goal, you must see the reaching in your own mind before you actually arrive at your goal.” We have so many goals regarding sustainable development before the world, before our nation and before each State of our country.
The Sustainable Development Goals are intended to be universal with shared common global vision of progress towards a safe, just and sustainable space for all human beings to thrive on the planet.
Our great Tamil poet, Kaniyan Poongunranaar had said yaadhum oore yaavarum kelir which means ‘To us, all towns are one, all men are our kin’. It means inclusive growth is inevitable. The greet poet, Saint Thiruvalluvar, had 2000 years ago defined the country as one which does not have extreme hunger due to failure of crops, incurable disease due to climatic changes and an enemy who attacks from outside leading to destruction. The poem reads as:
Urupasiyum ova piniyum serupakaiyum
Sera thiyalvadhu naadu
We are moving in the direction of providing food and healthcare for all without any discrimination. But still a country with more than 125 crore population, and which is growing day by day stronger than ever, poses a challenge in fulfilling the basic needs of life for every citizen of India.
There are different goals. Some are country specific, some are region specific and some are need specific. We should underline the challenges and undertake measures to overcome those challenges in reaching sustainable development for all.
Food security, affordable and best healthcare, safe drinking water and sanitation facilities for all, cleanliness, secured environment, housing for all, ending inequality and promotion of empowerment of women are some of the goals that should be achieved within a timeframe for human development.
Let us create a mindset among all our young men and women to work for the country selflessly. They are the future of this country. We should ensure quality and compulsory education to all our children irrespective of their economic status. Right to Education is one great step towards this goal, but still we need to walk an extra mile to educate our future Indians with zero dropout rate. Is that possible for us? Let us hope positively to contribute and build an enlightened and educated India as knowledge is power. It is worthy to mention here that the world needs Indians for their talented brain power.
Tamil Nadu, led by our beloved Chief Minister Dr. Puratchi Thalaivi Amma, has a vision document called Vision-2023 which tries to identify and remove the bottlenecks in development, prioritise critical infrastructure projects and work to propel the State of Tamil Nadu to the forefront of development once again. The objective of achieving economic prosperity and employment generation with inclusive growth is sought to be achieved through the implementation of a coherent vision.
The Tamil Nadu Infrastructure Development Board was established under the Chairmanship of the hon. Chief Minister, Dr. Puratchi Thalaivi Amma, for facilitating the speedy implementation of critical infrastructure projects. These projects are in important sectors including power, roads, port development, agriculture, irrigation, housing, health, higher education, urban development, public transport, industry and tourism.
Tamil Nadu has identified ten themes for the State as follows: (i) Tamil Nadu will be amongst India's most economicallv prosperous States by 2023 achieving a six-fold growth in per capita income over the next 11 years to be on par with the upper-middle income countries globally; (ii) Tamil Nadu will exhibit a highly inclusive growth pattern, which will largely be a poverty-free State with opportunities for gainful and productive employment for all those who seek it and will provide care for the disadvantaged, vulnerable and the destitute in the State; (iii) Tamil Nadu will be India's leading State in social development and will have the highest Human Development Index amongst all Indian States; (iv) Tamil Nadu will provide the best Infrastructure services in India in terms of universal access to housing, water and sanitation, energy, transportation, irrigation, connectivity, healthcare, and education; (v) Tamil Nadu will be one of the top-three preferred investment destinations in Asia and the most preferred in India with a reputation for efficiency and competitiveness; (vi) Tamil Nadu will be known as the innovation-hub and knowledge-capital of India on the strength of world class institutions in various fields and the best human talent; (vii) Tamil Nadu will ensure peace, security and prosperity for all citizens and business enabling free movement and exchange of ideas, people and trade with other Indian States and rest of the world; (viii) Tamil Nadu will preserve and care for its ecology and heritage; (ix) Tamil Nadu will actively address the causes of vulnerability of the State and its people due to uncertainties arising from natural causes, economic downturns and other man-made reasons, and mitigate the adverse-effects; and (x) Tamil Nadu will nurture a culture of responsive and transparent governance that ensures progress, security, and equal opportunity to all stakeholders.
Tamil Nadu, under the able leadership of hon. Amma, with path-breaking initiatives has been striving hard to ensure that by 2023 nobody is left behind in reaching these development goals. Necessary measures are undertaken to increase the per capita income by six-times when compared to present ones, so that the Gross State Domestic Product of Tamil Nadu will reach 11 per cent. As remarked by Dr. Putatchi Thalaivi Amma, an aspiration of making the State's economy grow at 11 per cent is an ‘achievable goal’ as the State had already clocked an impressive growth rate of 13.95 per cent in 2005-2006 and the manufacturing sector registered an all time growth of 15.10 per cent.
The State also concentrates on inclusive growth taking all the stakeholders on-board. Efforts are on to make it poverty-free, which means that no person in the State is deprived of any of the basic needs such as food, clothing and shelter. Any resident who seeks employment will be able to find gainful and productive employment commensurate to his or her capabilities. The State Government provides best healthcare and implements pro-people health insurance schemes in Tamil Nadu. It is noteworthy to mention that 90 per cent of the people of Tamil Nadu are covered under Public Distribution System, which functions effectively in the State.
World-class infrastructure irrespective of their economic status is the vision of Tamil Nadu Government. The total investment to enable universal access to infrastructure services over the next eight-year period in the State is estimated at Rs. 15 lakh crore. A substantial portion of the financing for infrastructure has to be mobilized from non-Governmental sources including private sector organizations, banks and Foreign Direct Investment.
Ten existing cities in the State would be developed to world-class levels, which would subsequently become the ‘nuclei and engines of economic growth’ of Tamil Nadu.
Tamil Nadu shall provide piped and pressurized 24-hour water supply to 100 per cent of its residents and ensure that all of them have access to safe sanitation including open defecation-free and garbage-free environment. Hon. Amma's vision is to build 20,000 MW of additional power-generation capacity in the next eight years. Twenty-five lakh affordable houses need to be constructed to create hut-free villages and slum-free cities. The State vision is to achieve universal secondary education, increase enrolment in colleges, including vocational educational education, to over 50 per cent.
Tamil Nadu is to do 2,000 kilometres of six to eight lane expressways, 5000 kilometres of four lane highways, and all highways being at least double-laned and with paved shoulders.
Incremental capacity of ports in Tamil Nadu will exceed 150 million tonnes per annum.
All urban nodes with population of over five lakhs will be connected with high speed rail corridors for both freight and passenger traffic. With a total capacity to handle 80 million passengers per annum across all airports in the State, with Chennai alone accounting for half the capacity, Tamil Nadu will provide the best facilities for air passengers.
Every village will be connected with high speed Optical Fibre Cable (OFC) network enabling broadband in terms of universal access to connectivity at a grass-root level across the state.
Tamil Nadu will put in place a system of integrated multimodal urban transport, including mass transit systems for faster connectivity. Chennai Metro is a recent addition to this.
Tamil Nadu will become one of the top three destinations for investment in Asia, and also be the most attractive State for investments in India. The key to being internationally competitive is highly efficient and responsive governance. Ensuring that every youth of Tamil Nadu is sufficiently skilled at his or her job is another vision.
Creating conducive peace and giving secured environment for all humans is yet another milestone. Moreover Tamil Nadu will preserve and care for its ecology through efficient recycling of solid waste, besides, preservation of environment, by minimizing atmospheric pollution and maintaining the ecological balance across the entire State.
Tamil Nadu will actively address the causes of vulnerability of the State and its people to uncertainties arising from natural causes, economic downturns and other man-made reasons and mitigate their adverse effects. Tamil Nadu will seek to be exemplary in the quality of progress, security, and equal in its planning and regulation in the State. Tamil Nadu as one of the most progressive States of the country wants to complement and supplement the efforts of the Union Government in attaining the Sustainable Development Goals. It is also the duty of the Union Government to provide incentives by way of special financial packages for progressive States like Tamil Nadu.
Again to from Tirukkural, it says,
“Nadenba Nada Valathana Nadalla
Nada Valantharu Nadu.”
It means “That alone is called a country where one need not seek all comforts, but everything is naturally there. That is not a country where the comforts or riches are sought for with effort.”
With the hope that we will make India self-sufficient and we will have inclusive growth, I conclude my speech. Thank you.
SHRI JAYADEV GALLA (GUNTUR): Mr. Deputy-Speaker. Sir, I feel that it would be inconclusive and incomplete if we start discussing Sustainable Development Goals without touching on the progress that we have made in implementation of the Millennium Development Goals. I am saying this because MDGs and SDGs are intertwined and SDGs are built on top of the MDGs as they aim for inclusive growth.
Sir, on the one hand, I am happy because you have given me an opportunity to speak on this important subject, but on the other, I am deeply anguished that even after becoming a part of MDGs framework in 2000 and implementing it for nearly 15 years, we are still languishing and struggling to achieve even the basic minimum goals. Forget about being at par with the West, the painful fact is that we are not even at part with the BRICS countries, that is, Brazil, Russia, China, India and south Africa.
Sir, next month the world leaders at the UN are going to adopt 17 goals and 169 targets under SDGs to be achieved by 2030. But before coming to the proposed Sustainable Development Goals, with your permission, let me touch upon some of the MDGs, the progress that we have made, the reasons behind our failure in achieving the same and some suggestions on how to overcome those failures.
The House is aware that there are eight goals and 18 targets to be achieved by this year end. If you look at the MDGs India Country Report 2015, so far, we have been able to achieve only four or five targets. We are into August and we have only four months left to achieve the remaining targets, which makes it very difficult to achieve by December 2015 deadline if you look at our track record. Who is responsible for this? I am neither playing any political blame-game nor am I interested in scoring brownie points. All I would say is that we have to accept that we have collectively failed to achieve these Goals.
The next point I wish to make is relating to Targets 3 and 4 of Goals 2 and 3 which aims at children to complete a full course of primary schooling. Yes, we have achieved this. We have the net enrolment ratio of 88 per cent in primary education. Apparent survival rate, that is, children surviving up to Vth standard is 93 per cent and youth literacy between the age group of 15 and 24 is 86 per cent. But, the problem is, we are concentrating more on retaining children, rather than giving them quality education.
I will talk about youth literacy. Undivided Andhra Pradesh has the highest number of engineering colleges and lakhs of students are coming out every year. But, if you look at the percentage of employability in these students, it is miniscule. Even the Skill India Report says that only 37 per cent of graduates are employable in the country. It means that there is lack of quality in education and the result is such that graduates are applying even for a clerk job. So, all I would say is that along with concentrating on quantity, we should also concentrate on quality education. It is good that the present Government is giving a lot of emphasis on skill development and created a separate Ministry for this purpose. I just attended a Workshop yesterday that Shri Rajiv Pratap Rudy had conducted. I hope that this will help us to increase the skilled people in the country from less than three per cent today to at least 30 per cent by 2019.
Goal No. 3 deals with the subject of empowerment of women. The NSS 68th Round (2011-12) results had estimated the percentage of share of females in wage employment in the non-agricultural sector as 19.3 per cent with corresponding figures for rural and urban areas as 19.9 per cent and 18.7 per cent respectively. There is an improvement in the status as the NSS 66th Round which was taken in 2009-10 had reported that the share of women in wage employment is 18.6 per cent at the national level and the corresponding estimates for rural and urban India pegged at 19.6 per cent and 17.6 per cent respectively. It is projected that, at this rate of progress, the share of women in wage employment can at best reach a level of about 22.28 per cent by 2015 which is far from the targeted fifty per cent. To achieve this, I suggest for consideration of the hon. Prime Minister to pass 33 per cent reservation for women in Lok Sabha and State Assemblies and also 50 per cent reservation in all local bodies. This would go a long way in empowering women and achieving this target. Secondly, I also recommend for reservation of women, particularly SC and ST and OBCs in the private sector to empower them financially. Thirdly, one of the indicators to achieve this Goal is to have equal ratio of girls to boys in primary, secondary and tertiary education. As I said earlier, we have been able to achieve universalisation of education. With the Government’s initiative of giving emphasis on education for girl child through Beti Bachao Beti Padhao, I am sure we can eliminate gender disparity in primary, secondary and in all levels of education very soon and match with the parameters of UNESCO.
With regard to Target 10 of Goal 7, I would say that we are better placed as far as providing drinking water is concerned. Of course, there are some villages or Mandals which still are suffering in getting safe drinking water. For example, we have 757 rural habitations, including 13 habitations from my district of Guntur, in 10 districts of AP affected with fluoride. They need to be provided with safe drinking water. With regard to sanitation, I would say that Swachch Bharat Abhiyan would definitely achieve this target in a year or so.
Coming to sustainable development, sustainable development has been defined as development that meets the needs of the present without compromising the ability of future generations to meet their own needs. SDGs cover much broader range of development issues such as poverty, hunger, improving health, education, climate change, protecting forests, etc. when compared to MDGs.
There are 17 goals with 169 targets. As I do not have the luxury of time to discuss each and every goal and target, I only wish to touch upon some of the important aspects. First I come to Goal 1 and 2 which deal with ending poverty in all its forms, ending hunger, food security and improved nutrition. There are various factors behind India’s poverty and hunger. India is estimated to have one-third of world’s poor as per 2013 estimates. Thirty-seven per cent of India’s 1.3 billion people fall below the International Poverty Line which is 1.25 US dollars per day. This is not my figure, Sir, this is the figure given by the Planning Commission. As per the World Health Organisation, 98,000 people die from diarrhoea each year in our country. It is due to lack of sanitation, nutrition and safe drinking water.
Goal 2 also deals with sustainable agriculture. Here I wish to submit that 20 per cent of the fruits and vegetables are going waste in our country. This is a very conservative estimate and it may be much higher than that also. If you calculate this in terms of money, it comes to nearly Rs.13,500 crore. If you add grains to it, then the wastage comes to Rs.44,000 crore every year in food wastage. This is directly contributing to food inflation, and successive governments are failing to stop this monumental wastage. If we stop this, we can provide nutritious foods to many of our poverty-stricken people which constitute 37 per cent of our population. For this, we have to develop cold chain facilities, food parks and food processing industries in the country.
To give example of my own State, undivided AP has the highest number of food processing units at 9,500 units. But it is not the case when it comes to other States. So, the Government has to push the private sector in this area which will considerably reduce the food wastage in the country.
Secondly, this government has resolved to take the benefits of social security to the last person in queue to reduce poverty and hunger and provide them with food security. And the JAM trinity – the Jan Dhan Yojana, Aadhaar, Mobile trinity – is one of the biggest pieces of reform ever attempted in the country. It aims to directly transfer subsidies to the accounts of the beneficiary thereby checking diversion, corruption and pilferage in the subsidies. I am confident that in the years to come we will be able to remove poverty and hunger from the map of this country.
The Government of India has also taken up Swachh Bharat on a mission mode and aims to accomplish the vision of a clean India by 2nd October, 2019, the 150th birth anniversary of the Father of Nation by spending Rs.62,000 crore. I am confident that this will wipe out the basic health hazards that the poor of this country are facing, and achieve Goal 3 of the SDGs.
Sir, I now come to Goal 4 which deals with quality education. Goal 3 aims to ensure healthy life and Goal 5 deals which deals with gender equality and empowerment of girls and women. Under the MDGs we only talked under Goal 2 about the universalisation of primary education. But here we are talking about inclusive and equitable quality education and to promote life long learning opportunities for all.
Here I am a little bit disappointed because philanthropy in India is yet to take off. If you look globally, philanthropists spend between two and five per cent of their net worth annually towards charitable activities. But here in India it is between 0.7 and 1.7 per cent. Secondly, in spite of the fact that we have double the number of NGOs when compared to schools, 250 times the number of government hospitals, each NGO covers 400 people as against one policeman for 709 people, we are still struggling to provide quality education, providing health and empowering women and girls.
These are the statistics as per the CBI which has collected this information. The point I am trying to drive at is that we have enough people but lack of commitment to improve the conditions of the people. I am confident that we would achieve this since the Government has made it mandatory for all companies under the Companies Act to spend two per cent of the average profit of the last three years when turnover is more than Rs.1000 crore or net worth of Rs.500 crore or more and a net profit of Rs.5 crore or more to spend on CSR activities. The CSR activities can be in the areas of education, gender empowerment, health, eradicating poverty and others.
I think next month we will get the first results of amounts spent by various companies under the CSR to be able to understand what the impact has been. But one estimate shows that there are around Rs.25,000 crore a year would be spent through corporate philanthropy. I am confident we will make a huge impact on achieving these goals.
Sir, Goal 6 deals with water and sanitation which is very vital for human kind. This goal is giving us time and says that by 2013 every country has to achieve access to adequate and equitable sanitation and hygiene for all and end open defecation by paying special attention to the needs of women and girls and those in vulnerable situations.
As I said earlier, we have already started the Swachh Bharat Abhiyan to provide sanitation facilities to every family including toilets, solid and liquid waste disposal system, village cleanliness and safe and adequate drinking water supply by 2nd October, 2019. So, to implement this with commitment, we need not wait even until 2030 as proposed by the United Nations. We can achieve this by 2019 itself.
Here one point I wish to make is to keep the constructed toilets functional. I am saying this because as per the baseline survey of 2013 by the Ministry, 20 per cent of toilets are defunct and the percentage is as high as 66 per cent in Jharkhand and 59 per cent in Chhattisgarh. So, this has to be looked at.
As per the reports of the Estimates Committee, seven crore people in the country across six States are suffering from arsenic in the groundwater and there are many blocks which are affected with fluoride. I request the hon. Minister of drinking water and sanitation to provide sufficient funds to address this problem. I also suggest for the consideration of the Government of India to permit spending MPLADS fund for providing drinking water, taking up projects and schemes to remove arsenic and fluoride content from the water.
Goal No. 8 deals with providing productive employment and decent work. Setting up a separate Ministry for skill development is one clear indication in which direction the Government wants to move. The Government’s aim of replacing the existing National Skill Development Policy with a new one clearly indicates in which direction it wants to go.
As per one estimate, India will need 500 million skilled people by 2020. With 70 per cent of our population living in rural areas, this is where we need to focus in order to achieve these numbers. We need to have alignment between skill development and industrial development. There is no point in creating jobs. We have to then bring people from rural areas to take up those jobs. It is much better to create those jobs where we have the people who can be trained and skilled and provide them those jobs.
There are other goals which are likely to be approved by the United Nations if all the countries agree to them. But there is some problem in accepting all the goals as they are two unwieldy. The United Kingdom and Japan have already expressed their reservations in accepting all the 17 goals. The United Kingdom’s Prime Minister has publicly said that he wants 12 goals at the most and he will be happy if they are limited to only 10. It is not only the Governments, but also some NGOs have expressed their reservations saying that there are too many goals.
Anyway, we have to see what the final outcome will be at New York next month. But I feel that the goals that I have talked about are the important ones and have to be a part of the STGs as they are the core of humanity, human dignity and human development. It has rightly been said by the hon. Prime Minister that unless we reinforce the priority of Millennium Development Goals through the principle of Sabka Sath Sabka Vikas and work together overcoming poverty, gender inequality, lack of sanitation, child mortality etc., we will continue to lag behind. But with the change of guard led by Shri Narendra Modiji, I am confident that we will achieve the Millennium Development Goals by next year with cooperation from civil society and private sector through the CSR activities and also the STGs before the deadline of 2030. With these words, I conclude my observations. Thank you.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल (दमोह) : उपाध्यक्ष महोदय, संधारणीय विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिए जो चर्चा इस सदन में श्री निशंक जी लेकर लाये हैं,उस पर मैं आपनी बात कहने के लिए खड़ा हुआ हूं। मैं अपनी बात अपने आराध्य परमपूज्य श्री बाबा श्री जी की वाणी से शुरू करूंगा। युग परिवर्तन का अकाटय सिद्धांत है-""मूल सुधार और भूल सुधार।"" यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि जब कभी हम इस विाय पर चर्चा करते हैं तो हम टुकड़ों में बात करते हैं। हम टुक़ड़ों में बात करने के आदी हो गये हैं। मेरा सबसे पहला सवाल सदन और सदन के माध्यम से दुनिया से है कि सतत विकास के लिए हम कौन सा मॉडल स्वीकार करेंगे? मैं तमिलनाडु के अपने मित्र की बात सुन रहा था। मैं उनकी बात से तो सहमत हो सकता हूं, लेकिन जब कोई यू.एन. की बात करता है, तो मैं उससे सहमत होने के लिए तैयार नहीं हैं। भारत में जितने प्रकार के क्षेत्र पाये जाते हैं, वहां पर अभी भी एक रूप विकास का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता, तो दुनिया के दूसरे राट्रों में उसकी पुनरावृत्ति नहीं हो सकती।
मैं दूसरी बात यह कहूंगा कि दुनिया में ऐसे कितने राट्र हैं, जिनकी संस्कृति लगातार चलती रही, जिन्होंने अपने विकास के लक्ष्यों को पूरा किया? वे देश कौन से हैं, जिन्होंने लगातार अपने अस्तित्व को बरकरार रखा? शायद हमें उसी मॉडल को देखना होगा। दैशिक शास्त्र नाम की पुस्तक है, 200 वाऩ पहले मनीिायों ने चेताया था। सौभाग्य से यहां प्रकाश जी मौजूद हैं। वह धन के भी जानकार हैं और जो विाय उनके पास है, शायद उनका ध्यान इस पर जाएगा। दैशिक शास्त्र में कहा गया था कि हम धन किसे मानेंगे। हमारे लिए पशु धन है, भूमि धन है। उन्होंने अनाज को भी धन माना और जल को भी धन माना। उन्होंने कहा कि जन की सुरक्षा के लिए चारों चीजें जरूरी हैं। जिसे मुद्रा कहते हैं, जिसका चलन आज दुनिया में है,जिसकी स्वीकार्यकता दुनिया के भीतर है, उन्होंने कहा यह द्रव्य है। इसका दुनिया के सामने बड़ा साफ दुपरिणाम है, जब गिरावट आई तो बड़े ताकतवर बैंक रातों रात दिवालिया हो गए, जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। जमीन जस की तस है, जंगल जहां पर थे, वहीं मौजूद हैं। पशु धन कहीं घट रहा है, कहीं बढ़ रहा है। इनको कहीं मांस के नाम पर काटे जा रहा है, यह विवाद का विाय हो सकता है। अगर हम समस्या की तरफ देखें तो पता चलता है कि समस्या का मूल कारण क्या है। दुनिया मानती है कि समस्या का मूल कारण जनसंख्या है। जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए क्या दुनिया में कोई कानून बना? क्या यूएन ने कुछ किया? भााण दिए। हमारे सामने लक्ष्य रख दिया गया कि जनसंख्या पर नियंत्रण करना चाहिए। जनसंख्या पर नियंत्रण करने का कारगर उपाय क्या होगा? क्या देश की संसद को इस पर विचार नहीं करना चाहिए? अगर आप यूएन के रेजोल्यूशन्स को मानते हैं तो क्या संसद के सामने सबसे पहली प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए, क्या सदन में विचार नहीं होना चाहिए कि हिंदुस्तान में जनसंख्या पर नियंत्रण होगा तो उसके लिए सब के लिए एक सा कानून होगा। आज जनसंख्या सबसे बड़ी चुनौती है।
आप खाद्यान्न की बात कहते हैं लेकिन आप चीन की तरह साम्राज्यवादी नहीं हैं। आप अमेरिका की तरह साम्राज्यवादी नहीं हैं। चीन ने अपनी सीमाओं से बाहर जाकर साइबेरिया के मैदान तक जमीनें खरीदी हुई हैं। उसने अपनी बढ़ती जनसंख्या को खिलाने के रास्ते तय कर रखे हैं। क्या हिंदुस्तान का कोई भी प्रधान इस नीति पर जाएगा? हम साम्राज्यवाद का विरोध करते रहे हैं। भारत की सीमा के भीतर हमें अपनी बढ़ती जनसंख्या के खाद्यान्न की चिंता करनी होगी। अगर हम दूसरों की नकल किसी भी तरह करेंगे तो मुसीबत का सामना करेंगे। हमें इस चेतावनी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
मैं दूसरी बात पीने के पानी के बारे में कहना चाहता हूं। माननीय अटल जी ने 1990 में राज्यसभा में भााण दिया था तब माननीय चन्द्रशेखर जी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने चेतावनी नहीं बल्कि संकेत दिया था कि शायद अगला विश्व युद्ध पीने के पानी के लिए होगा। हमारे पास सबसे बड़े खुले स्रोत पानी के हैं, हम यह दावा 1979 में किया करते थे। अब हमारी नदियां पीने के पानी के लायक नहीं हैं। मेरे राज्य में नर्मदा और चम्बल नदी को छोड़कर किसी भी नदी का पानी पीने के लायक नहीं है। भूमिगत जल स्रोत घट रहे हैं, अंडरग्राउंड वाटर घट रहा है। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?जनसंख्या का सीधा संबंध पानी से है। अगर जनसंख्या बढ़ेगी तो पीने के पानी का संकट भी बढ़ेगा।
आप स्वच्छता और शौचालय की बात कहते हैं। आप कौन सी नीति अपनाना चाहते हैं। मैं बुंदेलखंड से आता हूं, मैंने कमेटी में भी यही बात कही थी कि पठारी राज्य हों या पहाड़ी राज्य हों, अगर ग्रेविटी से पानी बंद हो गया तो मवेशियों के लिए पीने का पानी नहीं मिलेगा। जहां पीने के लिए पांच लीटर पानी नहीं है, क्या हम पांच लीटर फ्लश में पानी डालकर सफाई करेंगे?
18.00 hrs
क्या यह चुनौती नहीं है? आज हम अपने जो भी लक्ष्य बनाएंगे, वे लक्ष्य कहीं धन के अभाव में अधूरे न रह जाएं। यह बात आज सदन को गंभीरता के साथ सोचनी पड़ेगी। इसका कारण सिर्फ जनसंख्या है। आप इतनी बड़ी जनसंख्या को स्वच्छता का साधन देना चाहते हैं, लेकिन बिना पानी के स्वच्छता नहीं हो सकती है, यह बात बिलकुल सच है। इस बारे में हमें सदन में बहुत ईमानदारी से विचार करना पड़ेगा। मुझे लगता है कि जिन विायों पर सदन के भीतर सर्वाधिक चर्चा होनी चाहिए थी वह हैं - जल, जंगल, जमीन, जानवर आदि। हमने इन सभी को नज़रअंदाज किया और सिर्फ मुद्रा और पैसे की तरफ सारी नीतियां बनाते गए। शायद विपरीत दिशा में जाने के हमने जो क़दम उठाए हैं, उन भूलों को ठीक करने के लिए यह वाजिब समय है। ऐसा न हो कि हम 200 साल की पुरानी चेतावनियों को नज़रअंदाज करने के बाद, मैं किसी पर आरोप नहीं कर रहा हूं कि किसने ये गलतियां की हैं, लेकिन हिंदुस्तान में हरित क्रांति आई थी और लोगों ने कहा कि इससे बड़ी क्रांति नहीं हो सकती है। पंजाब और हरियाणा का आज क्या हाल है, वहां की जमीनों के क्या हाल हैं। जहां हमने जमीनों को भी खत्म कर दिया है, उसके साथ किसान को तो मरना ही था। मैं चार साल से मजदूरों के बीच काम करता हूं। हमारे मित्र डॉ. देवेन्द्र दिगारी ने पहाड़ी राज्यों का सर्वे किया था। उन्होंने बताया कि पहाड़ों में .01 पशु भी नहीं हैं। जब उसकी तह में गए, ये पहाड़ी राज्य सिर्फ जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड या उत्तरांचल के ही नहीं हैं, पूरे नार्थ-ईस्ट के राज्यों की भी यही हालत है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? अंग्रेज इस देश में आए। उन्होंने सबसे पहले कहा कि पहाड़ी लोग बहुत मजबूत हैं। ये आनंद में क्यों हैं? इन्हें सेना में क्यों भर्ती नहीं किया जाना चाहिए। जब उन्होंने आकलन किया तो उन्हें यह पता चला कि उनका जंगल पूरी तरह से समृद्ध है, उनके पास गौवंश है,उन्हें दूध मिलता है, उन्हें संस्कार मिलते हैं।
HON. DEPUTY SPEAKER: Mr. Prahlad Patel, you can continue next time.
18.01 hrs
The Lok Sabha then adjourned till Eleven of the Clock on
Friday, August 7, 2015/Shravana 16, 1937 (Saka).
SOURCE:http://www.loksabha.nic.in/Members/result16.aspx?dbsl=4277
(2)
Saugata Roy speaks in LS on creation of a new Union Ministry for the development of Himalayan States
Sir, what I wanted to say is that a fresh study of the whole Himalayan areas of the flood plains and the position of tectonic plates should be undertaken and how much of construction should be allowed in the hill areas should be freshly determined because in the present state, the Himalayas will be in danger and we are waiting for a disaster to happen in the Himalayas. The other thing that has happened, Nishank ji will note, is massive deforestation. The trees have been cut mercilessly throughout the Himalayas, particularly in Uttarakhand. He has mentioned Ramdev. Baba Ramdev has done nothing to preserve environment. He has started selling Ayurvedic drugs from his Haridwar ashram. I know it is a profitable business. There is some controversy; I do not want to go into it. He should have mentioned Sunderlal Bahuguna, the man who dared and started the Chipko movement. He said, when contractors come to cut the trees, hold them tight. He did more to raise consciousness about the Himalayas than anybody else did. Nishank ji’s Hindutva-oriented speech left out Sunderlal Bahuguna, the environmental part of it, the scientific part of it. Ye Jari bootiyan hai. Jari bootiyan can be used only when you use them as phytochemicals in a modern way. Pehle hamare Rishiyon ka jo gyan tha, use ajki gawaiyan nahi banegi. Uske liye jarurat hai ki woha jo jari bootiyan milte hai un par scientific research kareaur fir unse thik se dawaiyan bane. Sari duniya aisa kar rahi hai. Hum log abhi purani jari bootiyon ki baat kar rahe hai, Baba Ramdev yeh sab kar rahe hai, is prakar Himalaya ko bachya nahi ja sakta hai.Mai yeh bhi kahna chahta hoon ki Himalaya kebol hinduyo ka nahi hai.I was born a Hindu…
Acchi baat hai. Main khoos hoon ki bhutpurba Mukhya Mantri ji ko mere bhashan mein se kuch bolne ka mauka mila. Main yeh keh raha hoon ki Himalaya ki kinare kebal Hindu nahi rahte hain. Main to Hindu hoon. Lekin ladakha pura Buddhist hain, Sikim pura Buddhist hain. Ye hamara Vincent Pala ji Meghalaya ke Christian hai. Is liye Ganga ya Himalaya se Hindutwa ka koi jog nahi hai. Aap jo kah rahe ho ki Ganga ko bachayenge, are bhai, yeh saab logo ki hain. Aap Varanasi ko bachana chaahte hai. Varanasi mein jitney Hindu rahte hain, utne Musalman bhi rahte hain. Yeh dono hi hamari parampara ke bhag hai. Aap kyon mulk ko baant rahe hai?
Sorry, Sir. That is why, I want to say that let a Ministry for Himalayan Affairs be formed, not a Ministry for Himalayan States. That Ministry for Himalayan Affairs will take into account everything: its geological needs, its environmental needs, its water needs and its power needs. Make a holistic plan for the Himalayas. We have such a wealth in the Himalayas.
But the Himalaya is not only for poets. We used to read Kumarsambhav written by Kalidas where he has described about the Himalaya. It is translated in Bangla and I am reading a few lines from it.
Sudur urdhe oi surodham, sporshi tahare Himalaya naam,
Raje giriraj mohamohigarh, byapi uttarakhandey.
Sudur urdhe oi surodham, sporshi tahare Himalaya naam,
Raje giriraj mohamohigarh, byapi uttarakhandey.
That is a poet’s imagination. Bengali poets have always been attracted to the Himalayas. Tagore has written any number of poems on it. His father Debendranath Tagore used to spend a lot of time in the Himalayas. Swami Vivekananda, when he was touring around the country, went to Almora and sat there in meditation. Then he went into Mayavati, right into forest, and he opened Advaita Ashrama.
We have a famous writer called Prabodh Sanyal. He wrote two books namely Mahaprasthaner Pathe and Debotamta Himalay. There was a writer, Sir Ashutosh’s son, Umaprasad Mukherjee. He is known all over the Himalayans even in a small cheti people used to know him. He has written a book called Himalaya Pathe Pathe. Almost a hundred years ago, one Bengali writer Jaladhar Sen, wrote a book called Himalaya. So, the Himalaya has a great fascination for Bengalis.
Even last month, one Bengali lady, Chhanda Gayen, climbed the Kangchenjunga. She wanted to get up on the Associated Peak. Then, she lost and we have not found her body yet. That is the magic the Himalayas still hold for us. So, let us take a larger plan for the Himalayas. The unfortunate thing, if you go up to the Himalayas, you see is that it is so beautiful but people there are so poor. There is no road. When you go to a village, there is no road. There are enormous natural resources. We have not exploited them yet at all.
The Himalaya can be a source of the biggest hydroelectric power in the world. We have one dam called Tehri. We have one dam in Himachal Pradesh. But, hundreds of such mini hydle projects can be built on the Himalayas and the Himalayas would be ideal for modern industries like computers, electronic goods, for watches.
Look at what Switzerland has achieved. Last year or the year before the last, I went to Switzerland. The Alps is only 15000 feet high. How they have exploited the Alps! First, you see the Rhein Falls in Switzerland. When you go up to 14,000 feet – you know what I discovered there itself – everything is written in Hindi there. It is because every year our Mumbai people are going to Switzerland to shoot films. They do not go to the Himalayas because there is no infrastructure and other facilities. In Alps, when you are going up the mountains, you see hundreds of people doing skiing. There is a place called Laguna, which is known for winter sports. In Gulmarg, we have also some. But, this can be developed in a big way.
Sir, what is needed, is forward thinking. Unfortunately, all our politicians are concerned only about small things in the Himalayan areas. There has been no big tank thinking about the Himalayas. In Darjeeling areas of West Bengal, our State Government is doing a great job. It is the only place where a demand for a separate State has been subdued because of the development carried out by the Government led by Mamata Banerjee. We have been able to subdue totally divisive secessionist movements. In Sikkim, they have done great work. The Prime Minister mentioned the other day that Sikkim is the first organic State in the country and no inorganic fertilizer is used there. So, that is a great achievement. In sab ko ek jagah karna hai. Nishank ji, yeh bahut accha Bill hai. Aap Mantri to nahi bane, par apni jagah ko proti faithful rahe aur yahan ate hi apne Himalaya ki baat samne laye.
In this House we discussed the Uttarakhand flood. Dr. Nishank, you were not here in the 15th Lok Sabha. We discussed how human greed destroyed the Uttarakhand plains. Army and Air Force people and the Border Roads Organization had rescued many people. We are proud of them. If they had not been there, we do not know how many thousands of people would have been killed during the flood. That is a question to be asked.
I was in the Defence Consultative Committee. I constantly asked these Army people,”What are you doing about roads up to the Chinese border?” Sir, would you believe that the Chienese built a railway line from Beijing to Lhasa, and from Lhasa right up to the Arunachal Pradesh border? Bomdila would be 30 miles from there. Tawang would be only 30 miles from there. Here is our friend from Arunachal Pradesh. We have not been able to construct a railway line.
Sir, yeh sab urgent hai. Is liye main fir se unka prastab ka samarthan karta hun. Mujhe yeh kahna hai ki Himalaya ko develop kijiye. Isme se Hindutwa nikal dijiye, Ramdev wali baat nikal dijiye. Aiye, Hindu, Musalman, Bouddha, Christian adi sab log milkar humlog ek debatma Himalaya sel banaye.
SOURCE: http://aitcofficial.org/aitc/saugata-roy-speaks-on-the-issue-of-creation-of-a-separate-ministry-for-himalayan-states-in-lok-sabha/?0&cat_id=7
(3)
Sixteenth Lok Sabha
Uncorrected of Debate
RESOLUTION RE: CREATION OF A NEW UNION MINISTRY FOR THE DEVELOPMENT OF HIMALAYAN STATES
TIME: 3 TO 6 PM
11 JULY 2014
http://164.100.47.194/Loksabha/Debates/uncorrecteddebate.aspx
TIME: 3 PM TO 4 PM
DEBATE
PDF: PAGE NO 28
http://164.100.47.193/newdebate/16/2/11072014/3To4pm.pdf
TIME: 4 PM TO 5 PM
DEBATE
PDF: PAGE NO. 1 TO18
http://164.100.47.193/newdebate/16/2/11072014/4To5pm.pdf
TIME: 5 PM TO 6 PM
DEBATE
PDF : PAGE NO. 1 TO 23
http://164.100.47.193/newdebate/16/2/11072014/5To6pm.pdf
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